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________________ श्रमण भगवान् महावीर सिद्धार्थपुर से भगवान् वैशाली पधारे । एक दिन वैशाली के बाहर आप कायोत्सर्ग ध्यान में खड़े थे । उस समय नगर के बालक खेलते खेलते वहाँ आए और पिशाच समझ कर आपको सताने लगे । इसी समय राजा सिद्धार्थ का मित्र गणराज शंख भी अकस्मात् वहाँ पहुँच गया । उसने बालकों को वहाँ से भगाया और स्वयं भगवान् के चरणों में गिरकर क्षमायाचना की । ३६ वैशाली से आपने वाणिज्यग्राम के लिये प्रयाण किया । वैशाली और वाणिज्यग्राम के बीच गंडकी नदी पड़ती थी । भगवान् ने उसे नाव द्वारा पार किया । पार पहुँचने पर नाविक ने किराया माँगा और उत्तर न मिलने पर आपको वहीं रोक रक्खा । उसी समय शंखराज का भानजा 'चित्र' जो राजदूत बनकर कहीं जा रहा था, वहाँ पहुँच गया और उसने भगवान् को छुड़ाया । वाणिज्यग्राम जाकर भगवान् नगर के बाहर कायोत्सर्ग ध्यान में ठहरे । वाणिज्यग्राम में आनन्द नामक एक श्रमणोपासक रहता था । निरन्तर छठ तप और आतापना कर आनन्द को उन दिनों अवधिज्ञान प्राप्त हुआ था । भगवान् का आगमन जानकर वह बाहर गया और वन्दन करके बोला — 'भगवन् ! अब आपको थोड़े समय में ही केवलज्ञान उत्पन्न होगा ।' वाणिज्यग्राम से विचरते हुए भगवान् श्रावस्ती पधारे और दसवाँ वर्षावास श्रावस्ती में किया । यहाँ भी भगवान् ने विचित्र तप और योगक्रियाओं की साधना की । ११. ग्यारहवाँ वर्ष (वि० पू० ५०२-५०१) वर्षा चातुर्मास्य समाप्त होने के अनन्तर भगवान् ने श्रावस्ती से सानुलट्ठिय संनिवेश की तरफ विहार किया और सानुलट्ठिय में आपने निरन्तर सोलह उपवास के साथ खड़े रह कर ध्यान करते हुए भद्र, महाभद्र और सर्वतोभद्र प्रतिमाओं का आराधन किया । तप की समाप्ति पर भिक्षाटन करते हुए आप पूर्वोक्त आनन्द गाथापति के घर गये । आनन्द की बहुला नामक दासी रसोई के बरतन धोकर बचा खुचा अन्न फेंक रही थी कि इतने में भगवान् पहुँचे । दासी ने पूछा- 'क्या काम है, महाराज !' इस पर भगवान् ने अपने दोनों हाथ पसारे । दासी ने Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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