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तपस्वी-जीवन
ही चले गये । अब महावीर और गोशालक ये दो ही व्यक्ति वहाँ रह गये ।
प्रात:काल हलिदुग के नीचे एक दुर्घटना घटित हुई । यात्रियों ने वहाँ पर जो आग जलाई थी वह जलती हुई आगे बढ़ गई । जिस स्थान में भगवान् ध्यानारूढ़ थे वहाँ घास-पत्ते आदि बुहतसा कूड़ा पड़ा था । देखते ही देखते आग वहाँ पहुँची और 'भागो ! भागो !' कहता हुआ गोशालक वहाँ से भाग गया । महावीर ध्यानस्थित रहे और आग की लपटों से उनके पाँव झुलस गये ।
दोपहर के समय भगवान् ने वहाँ से विहार किया और नंगला गाँव के बाहर वासुदेव के मंदिर में जाकर ठहरे । नंगला से आप आवत्ता गाँव गये और बलदेव के मंदिर में ध्यान किया । आवत्ता से विचरते हुए भगवान् और गोशालक चोराय संनिवेश होकर कलंबुका संनिवेश की ओर गये ।
__ कलंबुका के अधिकारी मेघ और कालहस्ती जमींदार होते हुए भी पासपड़ोस के गाँवों में डाके डाला करते थे। जिस समय भगवान् वहाँ पहुँचे कालहस्ती डाकुओं के साथ डाका डालने जा रहा था । इन दोनों को देखकर डाकुओं ने पूछा-'तुम कौन हो ?' इन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया । कालहस्ती ने विशेष शंकित होकर इन्हें पिटवाया और प्रत्युत्तर न मिलने से बँधवाकर मेघ के पास भेज दिया ।
मेघ ने महावीर को गृहस्थाश्रम में एक बार क्षत्रियकुण्ड में देखा था । उसने महावीर को देखते ही पहिचान लिया और तुरंत छुड़ाकर बोला-'क्षमा कीजिये भगवन् ! आपको न पहिचानने से यह अपराध हो गया है ।' यह कहते हुए उसने लोंगो को उनका परिचय कराया और बहुमानपूर्वक वन्दन कर बिदा किया ।
___अभी बहुत कर्मों का क्षय करना बाकी है और अनार्य देश में कर्मनिर्जरा में सहायक अधिक मिलेंगे। यह सोचकर आपने राढभूमि की ओर विहार कर दिया । यहाँ पर अनार्य लोगों की अवहेलना, निन्दा, तर्जना और ताड़ना आदि अनेक उपसर्गों को सहते हुए आपने बहुत से कर्मों की निर्जरा कर डाली ।
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