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श्रमण भगवान् महावीर का परिचय दिया । तब आरक्षकों ने आपको आदर-सत्कारपूर्वक छोड़ दिया ।
___चोराक से भगवान् ने पृष्ठचम्पा की ओर विहार किया और चौथा वर्षावास पृष्ठचम्पा में ही किया । इस वर्षावास में आपने चातुर्मासिक तप
और विचित्र आसनों से ध्यान किया । चातुर्मास्य समाप्त होने पर बाहर गाँव में तप का पारणा कर आपने कयंगला की ओर विहार कर दिया । ५ पाँचवाँ वर्ष (वि० पू० ५०८-५०७)
कयंगला में 'दरिद्दथेर' नामधारी पाषंडस्थ लोग रहते थे। वे सपत्नीक और सारंभ परिग्रही थे । भगवान् ने उनके देवल में एक रात व्यतीत की । उस दिन उनका धार्मिकोत्सव था इसलिए सन्ध्या होते ही सब स्त्री पुरुष देवल में एकत्रित होकर बाजो-गाजों के साथ गाते हुए उत्सव मनाने लगे ।
__ कड़ाके का जाड़ा पड़ रहा था और उस पर यह धमाल ! गोशालक परेशान हो गया । वह लाचारी से रात्रिजागरण करता हुआ उनकी इस धार्मिक प्रवृत्ति की निन्दा करने लगा । बोला-'यह भी कोई धर्म है, जहाँ स्त्री पुरुष रात्रि में गाते बजाते हैं ?' अपने धर्म की निन्दा सुनकर लोगों ने उसे मंदिर से निकाल दिया ।
____ बाहर जाड़े से सिकुड़ कर बैठा हुआ गोशालक बोल रहा था'दुनिया का रास्ता ही उलय है । यहाँ सच बोलनेवालों की यह हालत होती है।' इस प्रकार बड़बड़ाता हुआ वह ठिठुर रहा था । लोगों को फिर उस पर दया आई और बोले-'यह देवार्य का सेवक है । इसे हैरान न करो, वापस भीतर बुला लो और जोरों से बाजे बजाओ ताकि इसकी बड़बड़ाहट सुनाई न दे ।'
कयंगला से भगवान श्रावस्ती पहँचे और नगर के बाहर कायोत्सर्ग ध्यान किया और वहाँ से आपने हलिदुग गाँव की तरफ विहार किया ।
हलिदुग के बाहर एक बहुत बड़ा वृक्ष था जिसे लोग हलिदुग कहते थे । महावीर और गोशालक ने इस हलिदुग के नीचे रात्रि-वास किया । और भी बहुत से पथिक लोग वहाँ ठहरे हुए थे जो प्रात:काल होते
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