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श्रमण भगवान् महावीर भगवान् राढभूमि से लौट रहे थे । उसके सीमाप्रदेश के पूर्णकलश नामक अनार्य गाँव से निकल कर आप आर्य देश की सीमा में आ रहे थे कि बीच में दो चोर मिले जो अनार्य भूमि में चोरी करने जा रहे थे । भगवान के दर्शन को उन्होंने अपशकुन माना और इसे निष्फल करने के विचार से उन्होंने भगवान् पर आक्रमण किया पर तत्काल इन्द्र ने वहाँ प्रत्यक्ष होकर आक्रमण निष्फल कर दिया ।
आर्य प्रदेश में पहुँच कर भगवान् मलय देश में विहार करते रहे और पाँचवाँ वर्षावास मलय की राजधानी भद्दिल नगरी में किया । इस चातुर्मास्य में भी भगवान् ने चातुर्मासिक तप और 'स्थान' आदि अनेक आसनों से ध्यान किया । चातुर्मास्य समाप्त होने पर भगवान् ने भद्दिल नगरी के बाहर पारणा कर कयलि समागम की ओर विहार कर दिया । ६. छठा वर्ष (वि० पू० ५०७-५०६)
भगवान् कयलि समागम से जंबूसंड और वहाँ से तंबाय संनिवेश गये । तंबाय में उन दिनों पापित्य नन्दिषेण स्थविर विचर रहे थे । गोशालक को वहाँ भी पार्खापत्य अनगार मिले और उनके साथ तकरार हुई ।
तंबाय से भगवान् कूपिय संनिवेश गये । यहाँ पर आपको गुप्तचर समझ कर राजपुरुषों ने पकड़ कर पीटा और सफाई न देने पर कैद कर लिया । परन्तु विजया और प्रगल्भा नामक दो परिवाजिकाओं ने तुरन्त घटनास्थल पर पहुँच कर राजपुरुषों का तिरस्कार कर कहा-'क्या तुम लोग सिद्धार्थ राजा के पुत्र, अन्तिम तीर्थंकर भगवान् महावीर को नहीं पहिचानते ? यदि यह बात इन्द्र तक पहुँचे तो तुम्हारी क्या दशा हो ?' यह सुन कर राज्याधिकारी काँप उठे । उन्होंने अपनी इस अज्ञानजन्य भूल के लिए भगवान् से क्षमा प्रार्थना की । दयामूति भगवान् महावीर ने मौन रह प्रार्थना स्वीकार
की ।
कृपिय से भगवान् ने वैशाली की ओर विहार किया । गोशालक ने इस समय आपके साथ चलने से इन्कार कर दिया । उसने कहा-'आपके साथ रहते हुए मुझे बहुत कष्ट उठाना पड़ता है परन्तु आप कुछ भी सहायता
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