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________________ २२ श्रमण भगवान् महावीर भगवान् की दृष्टि में चमकती हुई शान्ति और क्षमा की ज्योति से उसकी आँखें चौंधिया रही थीं । इसी समय महावीर ने ध्यान समाप्त कर उसे संबोधित किया—' समझ ! चण्डकौशिक समझ !!" भगवान् के इस वचनामृत से सर्प का क्रूर हृदय पानी पानी हो गया । वह शान्त होकर सोचने लगा- ' चण्डकौशिक यह नाम मैनें कहीं सुना हुआ है ।' ऊहापोह करते करते उसको अपने पूर्व जन्म का स्मरण हो आया । किस प्रकार उसका जीव पूर्व के तीसरे भव में इस आश्रमपद का 'चण्डकौशिक' नामक कुलपति था, किस प्रकार वह उद्यान को उजाड़नेवाले राजपुत्रों के पीछे दौड़ा, किस प्रकार दौड़ता हुआ गड्ढे में गिर कर मरा और पूर्व संस्कार वश भवान्तर में इस उद्यान में सर्प की जाति में उत्पन्न होकर इसका रक्षण करने लगा इत्यादि सब बातें उसको याद आ गई । वह विनीत शिष्य की तरह भगवान् महावीर के चरणों में जा पड़ा और पाप का पश्चात्ताप करते हुए उसने अपने वर्तमान पापमय जीवन का अन्त करने के लिये अनशन कर लिया । भगवान् भी वहीं ध्यानारूढ रहे । पन्द्रह दिन के अनशन के उपरान्त देह छोड़ कर चण्डकौशिक ने स्वर्ग प्राप्त किया और भगवान् ने आगे विहार किया । उत्तर वाचाला में जाकर महावीर ने नागसेन के घर १५ उपवास का पारणा किया । उत्तरवाचाला से भगवान् सेयंबिया की ओर गये । यहाँ पर राजा प्रदेशी ने आपका बहुत ही आदर-सत्कार किया । सेयंविया से भगवान् सुरभिपुर को जा रहे थे । मार्ग में प्रदेशी राजा के पास जाते हुए पाँच नैयक राजा मिले । इन्होंने भगवान् का बड़ा आदर सत्कार किया | सुरभिपुर और राजगृह के बीच में गंगा नदी पड़ती थी । भगवान् नाव पर चढ़े । दूसरे भी अनेक मुसाफिर नाव में बैठे थे जिनमें खेमिल नामक एक नैमित्तिक भी था । नाव के आगे चलते ही दाहिनी तरफ से घोर उलूकध्वनि हुई जिसे सुन कर खेमिल बोला- 'यह बड़ा अपशुकन है । मालूम होता है कि हम सब पर प्राणान्तक कष्ट आनेवाला है पर इन महात्मा Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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