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तपस्वी जीवन
पुरुष के प्रभाव से हम बाल-बाल बच जायेंगे ।'
नाव का गंगा के मध्यभाग में पहुँचना ही था कि वहाँ एक बड़ा भारी बवंडर आया । बाँसों पानी उछलने लगा । नाव हिलोरें खाने लगी और यात्रिजन अपने अपने इष्टदेवों और इष्टजनों को याद कर चिल्लाने लगे । बड़ी दिल दहलानेवाली घटना थी । सबके हृदय धड़क रहे थे । पर इस उत्पात के समय भी भगवान् महावीर नाव के एक कोने में निश्चल भाव से बैठे हुए ध्यान में मग्न थे ।
कुछ समय के बाद तूफान शान्त हुआ । नाव किनारे लगी । यात्री लोग नया जन्म मानते हुए नाव से जल्दी जल्दी उतरने लगे । भगवान् भी नाव से उतरे और गंगा के पुलिन में चलते हुए थूणाक संनिवेश के परिसर में जाकर ध्यानारूढ हो गये ।
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थोड़ी देर के बाद 'पुष्य' नामक एक सामुद्रिक शास्त्री उस रास्ते से गुजरा और गंगा के पुलिन में पडे हुए महावीर के पदचिह्नों को देख कर चकित हो गया और मन में सोचने लगा- ' - 'सचमुच आफत का मारा कोई चक्रवर्ती इस रास्ते से अकेला पैदल ही गया है । मैं जाकर उसकी सेवा करूँ ताकि भविष्य में जब इसे चक्रवर्ती पद मिले तो मेरे भी भाग्य खुल जायँ ।' पुष्य भगवान् की पदपंक्ति का अनुसरण करता हुआ थूणाक के परिसर में पहुँचा तो उसकी दृष्टि ध्यानावस्थित महावीर पर पड़ी । भगवान् को देखते ही वह निराश होकर बोला- 'आज तक मैं समझता था कि सामुद्रिक शास्त्र सच्चा है पर अब मेरा विश्वास उठ गया । शास्त्र में कहा है कि ऐसे रेखाङ्कित पादतल जिसके हों अवश्य ही चक्रवर्ती होता है पर आज मैं अपनी आँखों से देख रहा हूँ कि ऐसी रेखाओंवाला मनुष्य भी भिक्षु बन कर वन वन भटक रहा है !'
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पुष्य का शास्त्र से विश्वास उठ चुका था और शायद वह अपने ग्रन्थों को जलशरण भी कर देता पर इसी समय उसके सुनने में आया कि जिनके विषय में वह ऊहापोह कर रहा है वे कोई सामान्य भिक्षु नहीं हैं । ये भावी तीर्थंकर हैं जो चक्रवर्ती और स्वर्ग के इन्द्रों के भी पूजनीय हैं । तब वह शान्त हो गया ।
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