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श्रमण भगवान् महावीर हुए । पिशाच की बिभीषिकाओं से कुछ नहीं बना तो शूलपाणि ने विषधर नाग बनकर उनके शरीर के अनेक भागों में डंक मारा पर श्री महावीर के मन की थाह नहीं पाया ।
__ अन्त में शूलपाणि ने अपनी दिव्यशक्ति से उनके शरीर में अनेक वेदनायें उत्पन्न की और विशेष कर सिर, कान, आँख, नाक, दाँत, नख और पीठ इन सात अङ्गों में । पर क्षमामूर्ति श्रमण महावीर इन सब वेदनाओं को धैर्यपूर्वक सहन करते रहे ।।
रात भर शूलपाणि ने महावीर को विविध कसौटियों पर कसा पर उन्होंने लेशमात्र भी रंग न बदला । फलस्वरूप देव ने अपनी पराजय स्वीकार की और जिस क्रूर प्रकृति से उसने महावीर का सामना किया था वह प्रकृति उसके हृदय में से सदा के लिये विलीन हो गई । वह शान्त होकर क्षमाशील महावीर के चरणों में गिर पड़ा और अपराध की क्षमा प्रार्थना करता हुआ महावीर की धीरज और क्षमाशीलता के गीत गाने लगा ।
उस दिन भगवान् ने पिछली रात में एक मुहूर्त भर निद्रा ली जिसमें उन्होंने निम्नोक्त दस स्वप्न देखे
(१) अपने हाथ से ताल पिशाच का मारना । (२) अपनी सेवा करता हुआ श्वेतपक्षी । (३) सेवा करता हुआ चित्र कोकिल पक्षी । (४) सुगन्धित दो पुष्पमालाएँ । (५) सेवा में उपस्थित गोवर्ग । (६) पुष्पित-कमलोंवाला पद्म सरोवर । (७) समुद्र का पार करना । (८) उदीयमान सूर्य की किरणों का फैलना । (९) अपनी आँतों से मानुषोत्तर पर्वत का लपेटना, और (१०) मेरुपर्वत पर चढ़ना । रात्रि के समय में शूलपाणि के अट्टहास को सुनकर ग्रामवासियों ने
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