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________________ तपस्वी-जीवन १७ लिए आप कोई दूसरा स्थान देखिए ।' ग्रामजनों का अभिप्राय सुन कर महावीर ने कहा-'इस बात की तुम कुछ भी चिन्ता न करो । हमें केवल आज्ञा चाहिये ।' इस पर उनमें से एक ने कहा-'आप यहाँ रह सकते हैं। महावीर ने कहा- 'मुझे सारे गाँव की आज्ञा चाहिए क्योंकि सारे गाँव का ही इस चैत्य पर स्वामित्व है।' तब उपस्थित जनता ने आज्ञा प्रदान की और आपने चैत्य के एक कोने में जाकर ध्यान लगाया । सूर्यास्त के पहले-पहले सब लोग वहाँ से चले गये । पूजक ने महावीर से कहा-'देवार्य ! अब आप भी जाइये । यहाँ रह कर व्यर्थ प्राणों को संकट में न डालिये।' परंतु महावीर ने इसका कुछ भी उत्तर नहीं दिया । पूजक चला गया । भगवान् चैत्य के एक कोने में खड़े ध्यान में मग्न थे । शूलपाणि ने महावीर की इस निर्भयता को धृष्टता समझा । मन ही मन कुढ़ता हुआ वह बोला—'कैसा ढीठ मनुष्य है ! गाँववालों ने समझाया, पूजक ने चेताया, फिर भी यहाँ से नहीं हटा ! ठीक है । समय होने दो । अभी इसे दिखा दूंगा कि भलेमानसों की बात न माननेवालों की क्या दशा होती है ।' क्षण भर में संध्या हुई और यक्ष ने अपना पराक्रम दिखाना शुरु किया । सर्वप्रथम उसने एक अतिभयंकर अट्टहास किया जिसकी आवाज से सारा जंगल गूंज उठा । गाँव में सोते हुए मनुष्यों की छातियाँ धड़कने लगीं और हृदय दहल उठे पर इस भीषण अट्टहास का भगवान् महावीर के चित्त पर कुछ भी असर नहीं हुआ । वे निश्चल भाव से ध्यान में मग्न रहे । अब शूलपाणि ने हाथी का रूप धारण कर भगवान् के शरीर पर दन्तप्रहार किए और पैरों से उन्हें रौंदा पर भगवान् महावीर को ध्यानच्युत नहीं कर सका । फिर यक्ष ने विकराल पिशाच बन कर तीक्ष्ण नख-दन्तों से उनका शरीर नोंच-नोंच कर फाड़ा पर इस विक्रिया से भी महावीर ध्यान से विचलित नहीं श्रमण २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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