SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रमण भगवान् महावीर में आपको ठहराया गया था उसका मालिक झोंपड़े की देखभाल और रक्षा के लिये आपको बारबार चेताता और टोका करता पर आप उस ओर लक्ष्य नहीं देते थे । घास की कमी से गाएँ झोंपड़े की घास चरा करती और इसकी शिकायत कुलपति तक पहुँचती । एक बार कुलपति खुद भी आपको सूचित करता हुआ बोला-'कुमार ! एक पक्षी भी अपने घोंसले का रक्षण करता है और तुम क्षत्रियपुत्र होकर भी अपने आश्रय स्थान की रक्षा नहीं कर सकते ?' आश्रमवासियों के इस व्यवहार से वर्धमान का वहाँ से दिल उठ गया । उन्होंने सोचा-'अब मेरा यहाँ रहना आश्रमवासियों के लिये अप्रीतिकर होगा' । इसलिए वर्षाकाल के पंद्रह दिन व्यतीत हो जाने पर भी वहाँ से अस्थिकग्राम की ओर प्रयाण किया और वर्षाकाल वहीं पूरा किया । उक्त घटना ने महावीर के चित्त पर बड़ा प्रभाव डाला । परिणामस्वरूप उन्होंने निम्नलिखित प्रतिज्ञायें की (१) अब से अप्रीतिकर स्थान में नहीं रहूँगा । (२) नित्य ध्यान में लीन रहूँगा ।। (३) नित्य मौन रहूँगा । (४) हाथ में भोजन करूँगा । (५) गृहस्थ का विनय नहीं करूँगा । अस्थिकग्राम के परिसर में शूलपाणि नामक व्यन्तर देव का चैत्य था । भगवान् वहाँ गये और वहाँ ठहरने के लिये पूजक से आज्ञा माँगी पर पूजक ने यह अधिकार ग्राम का बताया । उस समय ग्रामजन भी वहीं इकट्ठे हुए थे । भगवान् ने उनसे चैत्य में ठहरने की आज्ञा माँगी तो लोगों ने कहा'महाराज ! आपका यहाँ रहना खतरनाक है । यह शूलपाणि देव कोई साधारण देव नहीं कि आप इसके मंदिर में ठहर कर सकुशल रह सकें । दिन में ही मनुष्य यहाँ रह सकता है, भूल कर भी यदि वह रात को यहाँ रह जाय तो उसकी कुशल नहीं । क्रोध की प्रतिमूर्ति यह शूलपाणि रात में यहाँ ठहरनेवाले को बड़ी निर्दयतापूर्वक मार डालता है । इस कारण रात्रिवास के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy