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तपस्वी-जीवन देवार्य के मारे जाने का अनुमान किया और पिछली रात को जब यक्ष ने गीत गाये तो लोगों ने निश्चय कर लिया कि देवार्य को मार कर वह यक्ष खुशी मना रहा है।
अस्थिकग्राम में एक उत्पल नामक निमित्तवेत्ता विद्वान् रहता था जो किसी समय पार्श्वनाथ की परम्परा का जैन साधु था और बाद में गृहस्थ बनकर निमित्तं ज्योतिष से अपनी जीविका चलाता था ।
उत्पल ने जब सुना कि शूलपाणि के चैत्य में ठहरे हुए देवार्य नवप्रव्रजित भगवान् वर्धमान हैं तो उसे बड़ी चिन्ता हुई और अमंगल कल्पनाओं में सारी रात पूरी कर सूर्योदय होते ही पूजक इन्द्रशर्मा और अन्य अनेक ग्राम के लोगों के साथ वह देवार्य का पता लेने शूलपाणि के चैत्य में गया । वहाँ पहुँचते ही उत्पल ने देखा कि महावीर के चरणों में पुष्प गन्धादि द्रव्य चढ़े हुए हैं । इस दृश्य से उत्पल और ग्रामजन के हर्ष का पार नहीं रहा । हर्षावेश में गगनभेदी नारे लगाते हुए वे सब भगवान् के चरणों में गिर पड़े और कृतज्ञता प्रकाश करते हुए बोले-'बहुत अच्छा हुआ जो देवार्य ने अपने दिव्य आत्मबल से क्रूर यक्ष को शान्त कर दिया ।'
भगवान् के स्वप्नों का फलादेश कहता हुआ उत्पल बोला'भगवन् ! पिछली रात को आपने जो स्वप्न देखे हैं उनका फल इस प्रकार होगा
(१) आप मोहनीय कर्म का जल्दी नाश करेंगे । (२) शुक्ल ध्यान आपका साथ न छोड़ेगा । (३) आप विविध ज्ञानमय द्वादशाङ्ग श्रुत की प्ररूपणा करेंगे । (४) ? (५) श्रमण-श्रमणी-श्रावक-श्राविकात्मक संघ आपकी सेवा करेगा । (६) चतुर्विध देवनिकाय आपकी सेवा में उपस्थित होगा । (७) संसार समुद्र को आप पार करेंगे । (८) आपको केवलज्ञान उत्पन्न होगा । (९) स्वर्ग मर्त्य और पाताल तक आपका निर्मल यश फैलेगा, और
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