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________________ गृहस्थ जीवन महासामन्त की पुत्री 'राजकुमारी यशोदा' के साथ उनका विवाह हुआ और उससे उनके 'प्रियदर्शना' नामक पुत्री भी हुई । ७. अभिनिष्क्रमण कुमार वर्धमान स्वभाव से ही वैराग्यशील और एकान्तप्रिय थे। उन्होंने माता-पिता के दाक्षिण्य से गृहवास स्वीकार किया । इससे जब वे २८ वर्ष के हुए और माता-पिता का देहान्त हो गया तो उनका मन प्रव्रज्या के लिए उत्कण्ठित हो उठा । उन्होंने अपने ज्येष्ठ भ्राता नन्दिवर्धन और इतर स्वजनवर्ग १. दिगम्बर संप्रदाय महावीर को 'अविवाहित' मानता है जिसका मल आधार शायद श्वेताम्बर संप्रदाय सम्मत आवश्यकनियुक्ति है । उसमें जिन पाँच तीर्थंकरों को 'कुमारप्रवजित' कहा है उनमें महावीर भी एक है । यद्यपि पिछले टीकाकार 'कुमारप्रव्रजित' का अर्थ 'राजपद नहीं पाए हुए' ऐसा करते हैं परन्तु आवश्यकनियुक्ति का भाव ऐसा नहीं मालूम होता । नियुक्तिकार 'ग्रामाचार' शब्द की व्याख्या में स्पष्ट लिखते हैं कि 'कुमारप्रव्रजितों को छोड़ अन्य तीर्थंकरों ने भोग भोगे ।' (गामायारा विसया ते भुत्ता कुमाररहिएहि) इस व्याख्या से यह ध्वनित होता है कि आवश्यकनियुक्तिकार को 'कुमारप्रव्रजित' का अर्थ 'कुमारावस्था में दीक्षा लेनेवाला' ऐसा अभिप्रेत है । इसी नियुक्ति अथवा इस पर से बने हुए दिगम्बर संप्रदायमान्य किसी अन्य ग्रन्थ के आधार पर दिगम्बर सम्प्रदाय में महावीर के कौमार्य जीवन की मान्यता चल पड़ी मालूम होती है । श्वेताम्बर ग्रन्थकार महावीर को विवाहित मानते हैं और उसका मूल आधार 'कल्पसूत्र' है। उसमें महावीर की स्त्री और उनकी पुत्री के नामों का उल्लेख मिलता है । कल्पसूत्र के पूर्ववर्ती किसी सूत्र में महावीर के गृहस्थाश्रम का अथवा उनकी भार्या यशोदा का वर्णन हमारे दृष्टिगोचर नहीं हुआ । महावीर ने २८ वें वर्ष के बाद घर में रह कर दो वर्ष संयमी जीवन बिताया ऐसे उल्लेख अनेक स्थलों में मिलते हैं और आश्चर्य नहीं यदि उसके भी बहुत पहले से वे ब्रह्मचारी बने हुए हों क्योंकि दीक्षाकाल में या आगे पीछे कहीं भी यशोदा का नामोल्लेख नहीं मिलता । यदि तब तक यशोदा जीवित होती तो महावीर की बहन तथा पुत्री की ही तरह वह भी प्रव्रज्या लेती अथवा अन्य रूप से उसका नामोल्लेख पाया जाता । संभव है कि यशोदा अल्पजीवी हो और उसके देहावसान के बाद महावीर ब्रह्मचारी रहने से ब्रह्मचारी के नाम से प्रसिद्ध हो गये हों और उसी प्रसिद्धि ने कालान्तर में महावीर को 'कुमारप्रवजित' के रूप में प्रसिद्ध किया हो । कुछ भी हो पर इतना तो निश्चित है कि महावीर के अविवाहित होने की दिगम्बर संप्रदाय की मान्यता बिलकुल निराधार नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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