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श्रमण भगवान् महावीर के लिए उनके लेखशाला प्रवेश का प्रसंग विशेष उल्लेखनीय है वर्धमान अलौकिक ज्ञान और विद्याओं के प्रकाण्ड विद्वान थे परन्तु इनकी गम्भीरता के कारण उनके माता-पिता तक भी उनकी विद्वत्ता के संबंध में कुछ भी नहीं जान पाये इसीलिये उन्होंने आठ वर्ष पूरे होते ही अपने प्रिय पुत्र को विद्याध्ययन कराने के लिए लेखशाला में भेजने का निश्चय किया और शुभ तिथिकरण-योग में महोत्सवपूर्वक एक विद्यार्थी के रूप में उन्हें लेखशाला में भर्ती किया ।
ठीक उसी समय स्वर्ग के इन्द्र को इसका पता लगा । बालक वर्धमान की गंभीरता और उनके माता-पिता की मुग्धता को देख कर इन्द्र को बड़ा आश्चर्य हुआ । तत्काल उसने वृद्ध ब्राह्मण के रूप में क्षत्रियकुण्डपुर की ओर प्रयाण किया और उस लेखशाला में जाकर वर्धमान से व्याकरण विषयक अनेक प्रश्न पूछे जिनके उन्होंने स्पष्ट और ठीक उत्तर दिए ।
कुमार के विद्वत्तापूर्ण उत्तरों से पाठशाला का अध्यापक चकित हो गया । वह अपने शंकास्थलों को याद कर कुँवर से पूछने लगा । कुँवर ने भी प्रश्नों के होते ही उसकी सब शंकाओं का समाधान कर दिया । अध्यापक के आश्चर्य का ठिकाना न रहा । वह आश्चर्यपूर्ण दृष्टि से वर्धमान और वृद्ध की तरफ देखने लगा । उस समय वृद्धरूपधारी इन्द्र बोला"देवानुप्रिय ! इस राजकुमार को तुम साधारण बालक न समझो । यह बालक विद्या का सागर और ज्ञान का निधि है । इस का समकक्ष इस देश में तो क्या भारतवर्ष में भी नहीं मिलेगा । सज्जनो ! इसे साधारण मनुष्य न समझो । यह ज्ञानी है जो आगे जाकर एक महान् धर्मतीर्थंकर होकर इस भारतवर्ष का उद्धार करेगा ।" यह कहकर उसने अपना स्वरूप प्रकट किया और वर्धमान को नमस्कार कर अन्तर्धान हो गया । - अब वर्धमान के माता-पिता और परिजनगण कुमार की विशेषताओं को समझ पाए और उसी क्षण उन्हें वापस अपने घर ले गये । ६. विवाह और संतति
वर्धमान की बाल्यावस्था व्यतीत होने पर समरवीर नामक एक
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