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________________ श्रमण भगवान् महावीर बालक हमारे कुल में अवतीर्ण हुआ है तब से हमारे कुल में धन, धान्य, कोश, कोष्ठागार, बल, परिजन और राज्य की वृद्धि हो रही है तथा सामन्त राजा स्वयं हमारे वश में आ गये हैं। इस कारण हमने पहले ही निश्चय कर लिया था कि हम इस पुत्र का नाम 'वर्धमान' रक्खेंगे । हमारे वे चिरसंचित मनोरथ आज पूर्ण हुए हैं । हम इस बालक का नाम वर्धमान रखते हैं।" ३. बाल्यावस्था कुमार वर्धमान की बाल्यावस्था राजकुमारोचित वैभवसंपन्न थी । यद्यपि राजा सिद्धार्थ का उत्तराधिकारी कुमार नन्दिवर्धन था तथापि राजा सिद्धार्थ के लिये कुमार वर्धमान युवराज से भी अधिक थे । स्वप्नपाठकों ने चक्रवर्ती राजा अथवा धर्मतीर्थंकर होने का जो भविष्य कथन किया था उसे याद करते हुए सिद्धार्थ और रानी त्रिशला अपने इस छोटे पुत्र को अधिक भाग्यशाली समझते थे । पाँच धात्रियाँ, बालमित्र, नौकर-अनुचर और अन्यान्य सभी सुख साधन वर्धमान के लिए प्रस्तुत किये गये थे । वर्धमान बाल्यकाल से ही विवेक, विचार, शिष्टता और गाम्भीर्यादि अनेक गुणों से अलंकृत थे । अपने इन वृद्धोचित विशिष्ट गुणों से अपने समवयस्क मित्रों को ही नहीं बड़े बड़े समझदार वृद्धपुरुषों को भी चकित कर देते थे । जातिस्मरणादि अलौकिक ज्ञानों के कारण आप का हृदय पूर्वभवाभ्यस्त समग्र शास्त्रीय ज्ञान तथा विद्याओं से आलोकित था । यह सब होते हुए भी गम्भीरता के कारण आपकी इन विशिष्टताओं को कोई समझ नहीं पाता था । यद्यपि कुमार वर्धमान की बाल्यावस्था में अनेक चमत्कारपूर्ण घटनाएँ हुईं तथापि आमलकी क्रीडा और लेखशाला गमन ये दो घटनाएँ विशेष उल्लेखनीय हैं । ४. आमलकी क्रीड़ा __ वर्धमान की अवस्था आठ वर्ष से कुछ कम थी । वे अपनी मित्रमण्डली के साथ शहर के बाहर 'आमलकी' नामक खेल खेल रहे थे । उस समय इन्द्र द्वारा प्रशंसित वर्धमान कुमार के बल, धैर्य और साहस की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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