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________________ (१) प्रास्ताविक और नामनिरुक्ति २६६-२६८, (२) प्रवर्तक और प्रवर्तनसमय २६८-२७२, (३) धार्मिक आचार २७२-२७७, (४) धार्मिक तथा दार्शनिक सिद्धान्त २७७-२८३, आजीवक और दिगम्बर २८३-२८६, आजीवकों का इतिहास २८६-२९१, उपसंहार २९१ । षष्ठ परिच्छेद जिनकल्प और स्थविरकल्प २९२ जिनकल्पिक २९२-२९३, स्थविरकल्पिक २९४-२९५, दिगम्बराचार्यों का स्थविरकल्प २९५-२९६, मतभेद का अंकुर २९६२९९, मतभेदांकुर की नवपल्लवता २९९-३०१, दिगम्बर संप्रदाय का आदिपुरुष शिवभूति ३०१, औत्सर्गिक और आपवादिक लिंग ३०१३०२, शिवभूति ने अपवादरूप से वस्त्रपात्र की छूट दी थी ऐसा भगवती-आराधना आदि प्राचीन ग्रंथों से सिद्ध होता है ३०३-३०८, मतभेद का परिणाम ३०८, शिवभूति के अनुयायी बाद में यापनीय और खमण कहलाये ३०८, कुन्दकुन्द, देवनन्दी आदि की नई परम्परा ३१३, भट्टारक देवसेन के मत से श्वेताम्बरोत्पत्ति ३१४, पं. वामदेव के विचार से श्वेताम्बरनामनिरुक्ति ३१६, भद्रबाहु के दक्षिणापथ में जाने और श्वेताम्बरमतोत्पत्ति की दिगम्बरोक्त कथा ३१७-३२०, दिगम्बरोक्त दन्तकथाओं की मीमांसा ३२०-३२४, श्वेताम्बर वा दिगम्बरों के संबन्ध में आधुनिक विद्वानों के विचार ३२४-३२८, श्वेताम्बर संप्रदाय की प्राचीनता ३२८-३३३, आधुनिक दिगम्बर जैन परम्परा की अर्वाचीनता ३३३-३३८, श्वेताम्बर जैन-आगम और दिगम्बर ग्रन्थ ३३८-३४०, पहले दिगम्बर श्वेताम्बरमान्य आगमों को मानते थे ३४१, भगवतीआराधना, मूलाचार आदि प्राचीन दिगम्बरग्रन्थ श्वेताम्बरमान्य आगमों के आधार पर बने हैं ३४१-३५०, दिगम्बरग्रन्थ के लिखने की कथा ३५१-३५४, उपसंहार ३५४ । विहारस्थल-नामकोष ३५९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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