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________________ के विषय में २०४, मनुष्यलोक की मानववस्ती के संबन्ध में २०४, सुख अथवा दुःख के परिमाण के विषय में २०५, एकान्त दुःखवेदना के संबन्ध में २०६ । बयालीसवाँ वर्ष २०६, दुष्षमदुष्षम काल का भारतवर्ष और उसके मनुष्य २०६-२०७, अपापा के उद्यान में कालचक्र और तत्कालीन जनसमाज का स्वरूपवर्णन २०७-२१२, हस्तिपाल की रज्जुगसभा में भगवान् की अन्तिम देशना और निर्वाणप्राप्ति २१३ । परिशिष्ट खण्ड प्रथम परिच्छेद शिष्य संपदा २१७-२२७ इन्द्रभूति गौतम २१८-२१९, अग्निभूति गौतम २१९, वायुभूमि गौतम २२०, आर्यव्यक्त २२०-२२१, सुधर्मा २२१-२२२, मंडिक २२२-२२३, मौर्यपुत्र २२३, अकंपित २२३-२२४, अचल-भ्राता २२४-२२५, मेतार्य २२५, प्रभास २२६, एकादश गणधरकोष्ठक २२७ । प्रवचन द्वितीय परिच्छेद २२८-२५० (१) सामान्य उपदेश २२८, आत्मविषयक भिन्न-भिन्न कल्पनायें २२९, लोकविषयक दार्शनिकों की कल्पनायें २२९ । (२) नियतिवादियों का खंडन २३०, अज्ञानवादियों का खंडन २३०-२३१, क्रियावादी-बौद्धमत का खंडन २३२ । __ (३) भोजनदोषों से कर्मबन्ध २३२, जगत् की उत्पत्ति के संबन्ध में विविध कल्पनायें २३४, आजीविकों की आत्मा के विषय में मान्यता २३४ । (४) धर्म्यश्रुत; श्रमणधर्माचरण का सामान्य उपदेश २३४-२३७, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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