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________________ विहारस्थल-नाम-कोष ४०१ सुमंगला ग्राम-यहाँ पर महावीर को कुशल पूछने के लिये सनत्कुमारेन्द्र आया था । यह गाँव कहाँ था यह बताना कठिन है । संभव है यह स्थान अंग भूमि में कहीं रहा होगा । सुरभिपुर-श्वेताम्बी से चलते हुए महावीर क्रमशः सुरभिपुर आये थे और यहाँ से नाव द्वारा गंगा पार करके थूणाक संनिवेश गये थे । यहाँ गङ्गा उतरते समय एक बड़ा भारी बवंडर आया था और नाव उलटते उलटते बच गई थी । सुरभिपुर विदेह से मगध जाते बीचमें आता था और गङ्गा के उत्तर तट पर स्थित था । संभव है यह विदेह भूमि की दक्षिणी सीमा का अन्तिम स्थान हो । सुवर्णखल-राजगृह निकटवर्ती कोल्लाकसंनिवेश से चम्पा की तरफ जाते सुवर्णखल बीच में आता था जहाँ जाते समय बीच में गोपालों द्वारा पकाई जाती खीर देख कर गोशालक वहाँ ठहर गया था और महावीर के कथनानुसार हाँडी के फूट जाने पर गोशालक ने नियतिवाद का सिद्धान्त पकड़ा था । यहाँ से ब्राह्मणगाँव होकर दोनों चम्पानगरी पहुँचे थे। इससे यह सुवर्णखल राजगृह से पूर्व दिशा में था और वाचाला के निकटवर्ती कनकखल आश्रमपद से भिन्न स्थान था । सुवर्णवालुका-यह नदी दोनों वाचाला नगरियों के बीच में पड़ती थी । इसी नदी के पुलिन में भगवान् महावीर का अर्धवस्त्र गिर कर रह गया था । सुंसुमार-यहाँ पर महावीर को शरण कर चमरेन्द्र ने इन्द्र पर चढ़ाई की थी और इन्द्र के वज्र प्रहार से भयभीत होकर वह महावीर के चरणों में गिरा था । संसुमार मिर्जापुर जिला में वर्तमान चुनार के निकट एक पहाड़ी नगर था । कई विद्वान् सुंसुमार के भर्ग देश की राजधानी बताते हैं । श्रमण-२६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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