________________
४०२
श्रमण भगवान् महावीर सुह्म-कई विद्वान् हुगली और मिदनापुर के बीच के प्रदेश को 'सुह्म' समझते हैं, जो उड़ीसा की सीमा पर फैला हुआ दक्षिण वंग का प्रदेश है । इनके मत में दक्षिण वंग ही, जिसकी राजधानी ताम्रलिप्ति थी, सुह्म देश था । कई विद्वानों के विचार में हजारीबाग, संथाल परगना जिलों के कुछ भाग प्राचीन सुह्म होना ठीक अँचता है । तब वैजयन्तीकार ने सुह्म को राढ का ही नामान्तर मान लिया है। इन सब मत विकल्पों का तात्पर्य हमको यही मिलता है कि हजारीबाग से पूर्व में जहाँ पहले भंगी देश था उसका पूर्व प्रदेश, राढ का दक्षिण पश्चिमी कुछ भाग और दक्षिणी वंग का थोड़ा पश्चिमी भाग पहले सुह्म के नाम से प्रसिद्ध था ।
सूरसेन-मथुरा के आसपास का भूमि-भाग पूर्वकाल में सूरसेन देश के नाम से प्रसिद्ध था । जैनसूत्रोक्त साढ़े पचीस आर्य देशों में सूरसेन का उल्लेख है । इस देश की राजधानी मथुरा थी ।
सूसुमारनगर-'सुंसुमार' शब्द देखिये । सेयविया-श्वेताम्बिका शब्द देखिये । सेयंविया-श्वेताम्बिका शब्द देखिये ।
सौगंधिका नगरी (सोगंधिया नगरी) इसके समीप नीलाशोक उद्यान था जिसमें सुकाल यक्ष का स्थान था । तत्कालीन राजा का नाम अप्रतिहत और रानी का सुकृष्णा देवी था । भगवान् महावीर ने यहाँ पर कुमार जिनदास को उसके पूर्वभव के कथनपूर्वक गृहस्थधर्म और साधुधर्म की दीक्षा दी थी ।
सौगन्धिका नगरी कहाँ थी इसका पता नहीं चला ।
सौराष्ट्र-जैनसूत्रोक्त साढे पचीस आर्य देशों में सौराष्ट्र भी संमिलित है । इसकी राजधानी द्वारिका थी । महावीर ने सौराष्ट्र तक विहार किया था यह कहना साहस-मात्र होगा । सूत्रों, चरित्रों में वैसा उल्लेख नहीं है । हाँ, शत्रुञ्जय-माहात्म्य जैसे माहात्म्य-ग्रन्थों से यह कह सकते हैं कि उन्होंने सौराष्ट्र में विहार किया होगा ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org