SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 457
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४०० श्रमण भगवान् महावीर हुआ है। सिद्धार्थपुर-राढ देश से चलते हुए भगवान् महावीर यहाँ आये थे । यहाँ पर उनको संगमक ने उपसर्ग किया था । सिद्धार्थपुर संभवत: उड़ीसा में कहीं रहा होगा । सिनपल्ली (सिणपल्ली)—यह गाँव पूर्व दिशा से सिन्धु देश की ओर जाते समय बीच में पड़ा था । इसके आस पास का प्रदेश विकट मरुस्थल भूमि थी । जैनसूत्रों के उल्लेखों से ज्ञात होता है कि सिनपल्ली के मार्ग निर्जल और छायारहित थे । एक सूत्रोल्लेख है कि सिनपल्ली के दीर्घ मार्ग में केवल एक ही वृक्ष आता है । देवप्रभसूरि के पाण्डवचरित्र महाकाव्य में उल्लेख है कि जरासन्ध के साथ यादवों ने सिनपल्ली के पास सरस्वती नदी के तट पर युद्ध किया था और युद्ध में अपनी जीत होने पर वे आनन्दवश होकर नाचे थे, जिससे सिनपल्ली ही बाद में आनन्दपुर के नाम से प्रसिद्ध हुआ । कुछ भी हो पर इससे यह तो निश्चित है कि सिनपल्ली मरुभूमि में एक प्रसिद्ध नगर था जो बाद में आनन्दपुर के रूप में परिवर्तित हो गया था । जैन सूत्रों के अनेक उल्लेखों से उक्त बात का समर्थन होता है । हमारे विचारानुसार बीकानेर राज्य के उत्तर प्रदेश में अवस्थित 'आदनपुर' नामक गाँव ही प्राचीन आनन्दपुर का प्रतीक हो तो आश्चर्य नहीं है । सुच्छेत्ता (सुक्षेत्र) यहाँ पर महावीर को उपसर्ग सहन करना पड़ा था । यह स्थान संभवतः अंग देश की भूमि में था । सुघोष नगर—इसके समीप देवरमण नामक उद्यान था और उसमें वीरसेन यक्ष का मंदिर था । तत्कालीन राजा का नाम अर्जुन और रानी का तत्त्ववती था । राजकुमार भद्रनन्दी को महावीर के उपदेश से धर्मप्राप्ति हुई थी। पहले वह जैन श्रावक और पुनः भगवान् के यहाँ आने पर जैन श्रमण बना था । सुघोष नगर किस देश के प्रदेश में था इसका निर्णय होना बाकी है। सुभोम–यहाँ भी महावीर को भिक्षावृत्ति करते समय सताया गया था । यह गाँव भी कलिंग भूमि में था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy