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विहारस्थल - नाम- कोष
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राजगृह — यह नगर महावीर के उपदेश और वर्षावास के केन्द्रों में सबसे बड़ा और प्रमुख केन्द्र था । इसके बाहर अनेक उद्यान थे पर महावीर के समवसरण का स्थान गुणशिलक उद्यान था, जो राजगृह से ईशान दिशा में था । राजगृह राजा श्रेणिक के राज्य काल में मगध की राजधानी थी । यहाँ के सैंकड़ों राजवंशी और अन्य नागरिक स्त्रीपुरुषों को महावीर ने अपने श्रमणसंघ में दाखिल किया था । हजारों मनुष्यों ने जैन धर्म को स्वीकार किया था । जैनसूत्रों में राजगृह में महावीर का दो सौ से अधिक बार समवसरण होने के उल्लेख हैं ।
आजकल राजगृह 'राजगिर' नाम से पहचाना जाता है, जिसके पास मोदागिरि पर्वतमाला के पाँच पर्वत हैं, जो जैनसूत्रों में वैभारगिरि विपुलाचल आदि नामों से उल्लिखित हैं । राजगिर बिहार प्रान्त में पटना से पूर्व-दक्षिण और गया से पूर्वोत्तर में अवस्थित हैं ।
राढ ( लाढा ) मुर्शिदाबाद के आसपास का पश्चिमी बंगाल पहले राढ कहलाता था जिसकी राजधानी कोटिवर्ष नगर था । जैनसूत्रों में राढ की गणना साढ़े पच्चीस आर्य देशों में की है । जयन्ती — कोश में राढ का नामान्तर सुझ लिखा है, परन्तु जैनसूत्रों में राढ और सुझ को भिन्न भिन्न माना है ।
रूप्यबालुका-दक्षिणवाचाला और उत्तरवाचाला नामक दो संनिवेशों के बीच में बहनेवाली एक नदी का नाम ।
रोहीडक नगर—इसके बाहर पृथिवीवतंसक नामक उद्यान था जहाँ धरण यक्ष का मंदिर था । इसका तत्कालीन राजा वैश्रमणदत्त और रानी श्रीदेवी थी । महावीर का यहाँ समवसरण हुआ था ।
रोहीडक उत्तर भारत में कहीं था । निश्चित स्थान और आधुनिक नाम का पता लगाना शेष है ।
लोहार्गला राजधानी — यहाँ पर महावीर गुप्तचर के शक से पकड़े गये थे, पर बाद में छोड़ दिये गये । लोहार्गला के तत्कालीन राजा का नाम जितशत्रु लिखा है, परंतु इससे यह जानना कठिन है कि लोहार्गला किस देश में कहाँ थी । इससे मिलते जुलते नामवाले तीन स्थल हमारे जानने में हैं—
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