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श्रमण भगवान् महावीर (१) हिमालय में लोहार्गल नामक एक स्थल था, ऐसा वराह पुराण से ज्ञात होता है । (२) पुष्कर-सामोद के पास एक लोहार्गल नामक वैष्णवों का प्राचीन तीर्थ है । (३) शाहाबाद जिले की दक्षिणी हद में 'लोहरडगा' नामक प्राचीन शहर है। इनमें से महावीर जहाँ विचरे थे वह लोहार्गला कोई एक हो सकता है या नहीं, यह कहना कठिन है । महावीर आलंभिया से कुंडाक, मईना, बहुसाल हो कर लोहार्गला गये थे और वहाँ से पुरिमताल । इस क्रम को देखते 'लोहरडगा' और पुष्कर के समीपवर्ती लोहार्गल तो नहीं हो सकते क्योंकि पुरिमताल से दोनों अति दूर हैं । रहा हिमालय वाला लोहार्गल सो वह यदि हिमालय की दक्षिण तलहट्टी में कहीं हो तो महावीर का वहाँ जाना असंभव नहीं । यदि अयोध्या प्रान्त में लोहार्गला नामक कोई स्थान रहा हो तो भी असंभव नहीं है ।
वंग-पूर्व समय में वंग शब्द से दक्षिणी बंगाल का ही बोध होता था, जिस की राजधानी ताम्रलिप्ति थी, जो आज कल तामलुक नाम से प्रसिद्ध है। बाद में धीरे-धीरे बंगाल की सीमा बढ़ी और वह पाँच भागों में भिन्नभिन्न नामों से पहिचाना जाने लगा । वंग (पूर्वी वंगाल), समतट (दक्षिणी बंगाल), राठ अथवा कर्ण सुवर्ण (पश्चिमी बंगाल), पुण्ड्र (उत्तरी बंगाल), कामरूप (आसाम) ।
चरित्रकार के लेखानुसार भगवान् महावीर ताम्रलिसि तक पधारे थे, तब सूत्रों के अनुसार आपका वर्धमान (बर्दवान) तक विचरना सिद्ध होता है ।
वज्रभूमि-बंगाल का वीरभोम प्रदेश जो महावीर के समय में अनार्य कहलाता था । आज भी वहाँ संथाल आदि आदि-निवासी जातियों का ही आधिक्य है ।
वट्ट-इस देश की गणना जैन सूत्रोक्त साढ़े पचीस आर्य देशों में की गई है । इसकी राजधानी का नाम माषपुरी था । यह देश उत्तर भारत में था, पर इसकी अवस्थिति किस भूमि प्रदेश में थी, इसका निश्चय नहीं हुआ ।
वत्स--कोशल के दक्षिण और आधुनिक इलाहाबाद के पश्चिम तरफ
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