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विहारस्थल-नाम-कोष
३८९ थी तथापि मिथिला भी एक समृद्ध नगरी थी । तत्कालीन मिथिला के राजा का नाम जैन ग्रंथों में जनक लिखा है, अतः अनुमान होता है कि जनकवंशीय किसी क्षत्रिय का मिथिला पर तब तक स्वामित्व बना रहा होगा ।
भगवान् महावीर के चातुर्मास्य के केन्द्रों में मिथिला की गणना थी । यहाँ आपने छ: चातुर्मास्य बिताये थे ।
सीतामढ़ी के पास मुहिला नामक स्थान ही प्राचीन मिथिला का अपभ्रंश है । वैशाली से मिथिला उत्तरपूर्व में अड़तालीस मील पर अवस्थित थी । कई विद्वान् सीतामढ़ी को ही मिथिला कहते हैं और कई जनकपुर को प्राचीन मिथिला मानते हैं ।
मिथिला के नाम से प्राचीन जैन-श्रमणों की एक शाखा भी प्रसिद्ध हुई थी, जो "मैथिलीया" कहलाती थी ।
मिढिया यह गाँव अंग जनपद में चम्पा से मध्यमा पावा जाते हुए मार्ग में पड़ता था। भगवान् महावीर को चमरेन्द्र नामक असुरेन्द्र ने यहाँ पर वन्दन किया था ।
मृगग्राम (मियगाम)-इसके बाहर चन्दनपादप नाम का उद्यान था जहाँ सुधर्म यक्ष का मंदिर था । मृगग्राम का तत्कालीन राजा विजयक्षत्रिय और रानी मृगादेवी थी । यहाँ पर भगवान् ने मृगापुत्र के पूर्व के पापों का वर्णन किया था ।
मियगाम उत्तर भारतवर्ष में कहीं था । निश्चित स्थान बताना अशक्य है ।
मृगवन-यह उद्यान वीतभयपट्टन के समीप था । यहाँ पर महावीर ने वहाँ के राजा उदायन को प्रव्रज्या दी थी ।
मत्तिकावती-दशार्ण देश की प्राचीन राजधानी मृत्तिकावती बहत ही प्राचीन स्थान है । इसके बाहर पहाड़ी टेकरी पर 'गजाग्रपद' नामक प्राचीन जैन तीर्थ था, जिसका उल्लेख प्राचीन जैन साहित्य में मिलता है । भगवान् महावीर अनेक बार यहाँ पधारे थे और यहाँ के राजा दशार्णभद्र को अपना
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