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श्रमण भगवान् महावीर
महापुर - इसके बाहर रक्ताशोक उद्यान था जहाँ रक्तपाद यक्ष का चैत्य था । तत्कालीन राजा का नाम बल और रानी का सुभद्रादेवी था । राजकुमार महाबल को जो बल का पुत्र था महावीर ने पहली बार श्राद्धधर्म में और दूसरी बार श्रमणधर्म में दीक्षित किया था । संभवतः यह नगर उत्तर भारतवर्ष में था ।
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महासेन उद्यान --- पावामध्यमा का वह उद्यान जहाँ भगवान् महावीर ज्ञानप्राप्ति के दूसरे दिन पधारे थे और इंद्रभूति गौतम आदि हजारों मनुष्यों को प्रव्रज्या देकर चतुर्विध संघ की स्थापना कर अपना धर्मशासन प्रचलित किया था ।
माकन्दी — यह नगर दक्षिण पञ्चाल के मुख्य नगरों में से एक था दुर्योधन से पांडवों के लिये कृष्ण द्वारा जिन पाँच नगरों की माँग की गई थी, उनमें माकन्दी भी शामिल था ।
माणिभद्रचैत्य- मिथिला का वह चैत्य जहाँ पर भगवान् महावीर ने ज्योतिषविद्या की प्ररूपणा की थी । महावीर की धार्मिकदेशना बहुधा इसी उद्यान में होती थी ।
मालव- पूर्व काल में मालव नाम से दो देश प्रसिद्ध थे । पहला मुलतान के आस पास का देश जो पहले मालव कहलाता था । जैनसूत्रों में जिस मालव की गणना अनार्य देशों में की है, वह यही मालव है । दूसरा मालव आज का मालवा है। मालवगण की स्थिति होने से प्राचीन अवन्तिजन पद ही बाद में मालव नाम से प्रसिद्ध हुआ ।
माषपुरी — यह नगरी जैनसूत्रोक्त साढ़े पच्चीस देश में अन्यतम "वट्टा" नामक देश की राजधानी थी । इस नगर से जैन श्रमणों की एक शाखा प्रचलित हुई थी जो माषपुरीया कहलाती थी । आज इसकी अवस्थिति किस प्रदेश में है और किस नाम से प्रसिद्ध है, इसकी खोज होनी चाहिये ।
मिथिला- - मिथिला शब्द से इस नाम की नगरी और इसके आसपास का प्रदेश दोनों अर्थ प्रकट होते हैं । वस्तुतः मिथिला विदेह देश की राजधानी थी । यद्यपि महावीर के समय में विदेह की राजधानी वैशाली
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