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________________ विहारस्थल-नाम-कोष ३८७ गाँवों में सभी मकानों के द्वार पर तीर्थंकर की मूर्ति बनवाने का आम रिवाज था । मथुरा का देवनिर्मित स्तूप जो कुछ वर्षों पहले कंकाली टीले में प्रकट हुआ है, वहाँ के शिलालेखों और जैनसूत्रों के लेखों के अनुसार दो हजार वर्ष पहले का एक महान् पवित्र तीर्थ है । आज मथुरा वैष्णव संप्रदाय का पवित्र धाम बना हुआ है। मईना संनिवेश-यहाँ पर भगवान् ने बलदेव के घर में ध्यान किया था और गोशालक पीटा गया था । यह संनिवेश कहाँ था, यह बताना कठिन है । आलंभिका, कुंडाग होकर भगवान् यहाँ आये थे और यहाँ से बहुसालकगाम होकर लोहग्गला राजधानी गये थे ।। मध्यमा-पावामध्यमा का कहीं-कहीं केवल 'मध्यमा' इस नाम से भी उल्लेख है । विशेष के लिये 'पावामध्यमा' शब्द देखिये । मलयग्राम–यहाँ पर भगवान् को संगमक ने उपसर्ग किया था । यह ग्राम उड़ीसा के उत्तर-पश्चिमी भाग में अथवा गोंडवाना में होने की संभावना है। मलयदेश–इस नाम के कम-से-कम दो देश थे । जहाँ भगवान् महावीर विचरे थे, वह मलय पटना से दक्षिण में और गया से नैर्ऋत में था । इसकी राजधानी भद्दिल नगरी जहाँ भगवान् महावीर ने वर्षाचातुर्मास्य किया था, पटना से सौ और गया से अट्ठाईस मील दूर थी । मल्लदेश-इस नाम के भी दो देश थे, एक पश्चिम मल्ल और दूसरा पर्व मल्ल । मुलतान के आस-पास का प्रदेश पश्चिम मल्ल कहलाता था और पावा कुशीनारा के पास की भूमि पूर्व मल्ल । महावीर ने पश्चिम मल्ल तक विहार किया था या नहीं, यह अनिश्चित है पर पूर्वमल्ल जनपद में आपके विहार करने में कोई संशय नहीं है । मल्ल राज्य वैशाली के पश्चिम और कोशल के पूर्वप्रदेश में था । गोरखपुर, सारन जिलों के अधिकांश भाग मल्लराज्य में थे । मगध से कोशल में जाते समय मल्लदेश बीच में आता था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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