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श्रमण भगवान् महावीर अयोध्या में फैजाबाद से दक्षिण की तरफ आठ-नौ मील पर अवस्थित भरतकुंड के समीप जो नंदगाँव है, यही प्राचीन नन्दिग्राम होना संभव है ।
नन्दिपुर-जैन सूत्रों में नन्दिपुर को शाण्डिल्य देश की राजधानी कहा है और सांडिल्य (संडिल्ला) की आर्य देशों में परिगणना की है। विशेष के लिये 'शाण्डिल्य' शब्द देखिये ।
नालंदा-राजगृह का एक उपनगर, जहाँ पर अनेक धनाढ्यों का निवास था और अनेक कारखाने चलते थे । महावीर ने यहाँ पर अनेक वर्षाचातुर्मास्य किये थे और अनेक भाविकों को धर्ममार्ग में जोड़ा था । आजकल के राजगिरि से उत्तर में सात मील पर अवस्थित बड़गाँव नामक स्थान ही प्राचीन नालंदा है । यहाँ पर प्राचीन बौद्ध विश्वविद्यालय के खंडहर निकले हैं, जो नालंदा विश्वविद्यालय के नाम से प्रख्यात था और विक्रम की सातवीं आठवीं शताब्दी में पूर्ण उन्नतदशा में था ।
पत्तकालक (पत्रकालक) यहाँ महावीर ने रात को शून्य घर में कायोत्सर्ग ध्यान किया था, 'जहाँ गोशालक स्कन्दक नामक युवक द्वारा पीटा गया था । पत्रकालक चम्पा के पास कहीं था ।
पञ्चाल-आजकल के रुहेलखण्ड को प्राचीन पञ्चालभूमि समझना चाहिये । पिछले समय में पञ्चाल के दक्षिणपञ्चाल और उत्तरपञ्चाल ऐसे दो विभाग माने जाते थे। गङ्गा से दक्षिण की तरफ के विभाग को दक्षिणपंचाल
और उत्तर विभाग को उत्तरपञ्चाल कहते थे । दोनों की राजधानियाँ क्रमशः काम्पिल्य और अहिच्छत्रा थीं ।
पाटलिपंडग्राम (पाडलिसंड)-इसके बाहर वनखंड नामक उद्यान था, जहाँ उंबरदत्त यक्ष का मंदिर था । यहाँ के तत्कालीन राजा का नाम सिद्धार्थ था । यहाँ के सागरदत्त सार्थवाह के पुत्र उंबरदत्त के पूर्वभवों का महावीर ने वर्णन किया था ।
पाठ (पाढा)—जैन सूत्रोक्त सोलह जनपदों में से एक का नाम पाठ अथवा पाढ था । यह देश मध्यम जनपदों में था । मध्यम जनपदों में उस समय कोशी से कुरुभूमि और विन्ध्य से हिमालय तक के देश माने जाते
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