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विहारस्थल-नाम-कोष
३७९ जहाँ भगवान् महावीर का समवसरण हुआ करता था । आनंदगाथापति, सुदर्शन श्रेष्ठि आदि को महावीर ने इसी उद्यान में प्रतिबोध दिया था ।
दृढ़भूमि-जहाँ म्लेच्छों की बसती अधिक थी । इंद्र की प्रशंसा से संगमक देव ने जहाँ एक रात में महावीर को वीस उपसर्ग किये थे, वह पेढालगाँव इसी भूमि में था । यह भूमि आधुनिक गोंडवाना प्रदेश होना चाहिये ।
देवरमरण उद्यान-साहजनी नगरी के निकट का एक उद्यान जहाँ पर महावीर ने शकटदारक के पूर्वभवों का वर्णन किया था ।
द्वारवती-जरासंध के साथ विरोध होने के बाद मथरा और सौरीपर को छोड़ कर यादवों ने पश्चिम समुद्र के तट पर सौराष्ट्र में अपना नवीन राज्य स्थापित किया था और द्वारवती नगरी को अपनी राजधानी बनाया था । यही द्वारवती, द्वारावती, द्वारामती तथा द्वारिका के नाम से भी प्रसिद्ध है । भगवान् नेमिनाथजी ने इसी द्वारवत्ती के बाहर ईशान दिशा में रैवतकोद्यान में दीक्षा ली थी । जैन सूत्रों में द्वारवती को सौराष्ट्र देश की राजधानी लिखा है।
नंगला गाँव-यहाँ पर महावीर ने वासुदेव के मंदिर में ध्यान किया था । नंगला श्रावस्ती से राठ की तरफ जाते बीच में पड़ता था । महावीर श्रावस्ती से हरिद्रुक और वहाँ से नंगला गये थे । संभव है यह गाँव कोशलभूमि के पूर्व प्रदेश में ही रहा होगा ।
नन्दन चैत्य-यह चैत्य मोका नगरी के बाहर था । यहाँ महावीर का समवसरण हुआ था ।
नन्दपाटक-ब्राह्मणग्राम जो सुवर्णखल से चम्पा जाते रास्ते में पड़ता था, उसके एक भाग का नाम जहाँ भगवान् महावीर ने पारणा किया था ।
नन्दिग्राम-वैशाली और कौशाम्बी के बीच में यह गाँव था । महावीर वैशाली से सूसुमार भोगपुर होकर नन्दिगाँव पधारे थे, जहाँ आपकी आपके पितृमित्र ने महिमा की थी और यहाँ से मिढियगाम होकर कौशाम्बी पधारे थे ।
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