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विहारस्थल-नाम-कोष
३८१ थे । पाठ की स्थिति इस भूमिमंडल के किस भाग में थी, यह निर्णीत नहीं हुआ ।
पावा (पापा)-पावा नाम की तीन नगरियाँ थीं । जैन सूत्रों के लेखानुसार एक पावा भंगिदेश की राजधानी थी । यह देश पारसनाथ पहाड़ के आस-पास के भूमि-भाग में फैला हुआ था, जिसमें हजारीबाग और मानभूम जिलों के भाग शामिल हैं । बौद्ध-साहित्य के पर्यालोचक कुछ विद्वान् पावा को मलय देश की राजधानी बताते हैं । हमारे मत से मलय देश की नहीं पर यह भंगिदेश की राजधानी थी । जैनसूत्रों में भंगिजनपद की गणना साड़े पच्चीस आर्य देशों में की गई है । मल्ल और मलय को एक मान लेने के परिणामस्वरूप पावा को मलय की राजधानी मानने की भूल हुई मालूम होती है ।
पावा (२) यह पावा कोशल से उत्तर-पूर्व में कुशीनारा की तरफ मल्ल राज्य की राजधानी थी । मल्ल जाति के राज्य की दो राजधानियाँ थीं, एक कुशीनारा और दूसरी पावा । आधुनिक पड़रौना को जो कासिया से बारह मील और गोरखपुर से लगभग पचास मील है, पावा कहते हैं । तब कोईकोई गोरखपुर जिला में पड़रौना के पास जो पपउर गाँव है, उसको प्राचीन पावापुर मानते हैं।
पावा (३)-तीसरी पावा मगध जनपद में थी । यह उक्त दोनों पावाओं के मध्य में थी । पहली पावा इसके आग्नेय दिशा भाग में और दूसरी इसके वायव्य कोण में लगभग सम अन्तर पर थी । इसी लिये यह प्रायः पावा-मध्यमा के नाम से ही प्रसिद्ध थी । भगवान् महावीर के अन्तिम चातुर्मास्य का क्षेत्र और निर्वाणभूमि इसी पावा को समझना चाहिये । आज भी यह पावा, जो बिहार नगर से तीन कोस पर दक्षिण में है, जैनों का तीर्थधाम बना हुआ है । विशेष के लिये प्रस्तावनागत खुलासा पढ़िये ।
पालकग्राम-इस गाँव में वाइल वणिक् महावीर का दर्शन अपशकुन मान कर उन्हें मारने दौड़ा था । यह गाँव चम्पा के निकट कौशाम्बी की दिशा में था । महावीर कौशाम्बी से पालक होकर चम्पा गये थे ।
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