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________________ ४२ लिखा है । इससे ज्ञात होता है कि आपका जन्मस्थान क्षत्रियकुण्डपुर वैशाली का ही एक विभाग रहा होगा । (२) जब कि भगवान् ने राजगृह और वैशाली आदि में बहुत से वर्षा चातुर्मास्य किये थे तब क्षत्रियकुण्डपुर में एक भी वर्षाकाल नहीं बिताया । यदि क्षत्रियकुंडपुर जहाँ आज माना जाता है वहीं होता तो भगवान् के कतिपय वर्षावास भी वहाँ अवश्य ही होते, पर ऐसा नहीं हुआ । वर्षावास तो दूर रहा, दीक्षा लेने के बाद कभी क्षत्रियकुण्डपुर अथवा उसके उद्यान में भगवान् के आने जाने का भी कहीं उल्लेख नहीं है । हाँ, प्रारंभ में जब आप ब्राह्मणकुण्डपुर के बाहर बहुसाल चैत्य में पधारे थे तब क्षत्रियकुण्डपुर के लोगों का आपकी धर्मसभा में जाने और जमालि के प्रव्रज्या लेने की बात अवश्य आती है । । भगवान् महावीर बहुधा वहीं अधिक ठहरा करते थे जहाँ पर राजवंश के मनुष्यों का आपकी तरफ सद्भाव रहता । राजगृह-नालंदा में चौदह और वैशाली-वाणिज्यग्राम में बारह वर्षावास होने का यही कारण था कि वहाँ के राजकर्ताओं की आपकी तरफ अनन्य भक्ति थी । क्षत्रियकुण्ड के राजपुत्र जमालि ने अपनी जाति के पाँच सौ राजपुत्रों के साथ निर्ग्रन्थ धर्म की प्रव्रज्या ली थी। इससे भी इतना तो सिद्ध होता है कि क्षत्रियकुण्डपुर जहाँ से कि एक साथ पाँच सौ राजपुत्र निकले थे कोई बड़ा नगर रहा होगा । तब क्या कारण है कि महावीर ने एक भी वर्षावास अपने जन्मस्थान में नहीं किया ? इसका उत्तर यही है कि क्षत्रियकुण्डपुर वैशाली का ही एक भाग-उपनगर था और वैशाली-वाणिज्यग्राम में बारह वर्षा चातुर्मास्य हुए ही थे जिनसे क्षत्रियकुण्ड और ब्राह्मणकुण्ड के निवासियों को भी पर्याप्त लाभ मिल चुका था । इस परिस्थति में क्षत्रियकुण्ड में जाने आने अथवा वर्षावास करने संबंन्धी उल्लेखों का न होना अस्वाभाविक नहीं है । (३) भगवान् की दीक्षा के दूसरे दिन कोल्लाक संनिवेश में पारणा करने का उल्लेख है । जैन सूत्रों के अनुसार कोल्लाकसंनिवेश दो थे-एक वाणिज्यगाँव के निकट और दूसरा राजगृह के समीप । यदि भगवान् का जन्मस्थान आजकल का क्षत्रियकुण्ड होता तो दूसरे दिन कोल्लाक में पारणा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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