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भगवान् कभी-कभी संभाषण करते थे, यह बात शास्त्र-सिद्ध है । सिद्धार्थपुर से कूर्मग्राम जाते समय तिलस्तंब के विषय में गोशालक ने जो प्रश्न किया था, उसका उत्तर भगवान् ने ही अपने मुख से दिया था । देखिये आवश्यक टीका की निम्नलिखित पंक्ति
"ताहे भीतो पुच्छति-किह संखित्तविउलतेयलेस्सो भवति ? भयवं भणइ-जे णं गोसाला छठें छटेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं आयावेइ" (२८७)
इत्यादि प्रमाणों को देखते हुए यह कहना कुछ अनुचित नहीं है कि भगवान् कभी-कभी भाषण अवश्य करते थे और इसी कारण से हमने इनके चरित्र में से सिद्धार्थ का प्रसंग हटाकर सिद्धार्थ से कहलाई गई बातें भगवान् के ही मुख से कहलाई हैं । (२) भगवान् महावीर की जन्मभूमि
दूसरा परिवर्तन हमें भगवान् महावीर की जन्मभूमि के विषय में करना पड़ा है।
प्रचलित परम्परानुसार आजकल भगवान् की जन्मभूमि पूर्व बिहार में क्यूल स्टेशन से पश्चिम की ओर आठ कोस पर अवस्थित लच्छु-आड़ गाँव माना जाता है, पर हम इसको ठीक नहीं समझते । इसके अनेक कारण हैं
(१) सूत्रों में महावीर के लिये "विदेहे विदेहदिन्ने विदेहजच्चे विदेहसूमाले तीसं वासाइं विदेहंसि कट्ट" इत्यादि जो वर्णन मिलता है, इससे वह स्वतः सिद्ध होता है कि महावीर विदेह देश में अवतीर्ण हुए और वहीं उनका संवर्धन हुआ था । यद्यपि टीकाकारों ने इन शब्दों का अर्थ और ही तरह से लगाया है, पर शब्दों से प्रथमोपस्थित 'विदेह, वैदेहदत्त, विदेहजात्य, विदेहसुकुमाल, तीस वर्ष विदेह में (पूरे) करके' इन अर्थवाले शब्दों पर विचार करने से यही ध्वनित होता है कि भगवान् महावीर विदेह जाति के लोगों में उत्तम और सुकुमार थे । एक जगह तो महावीर को 'वैशालिक' भी
१. सचित्र कल्पसूत्र पत्र ३० (१) ।
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