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होना असंभव था, क्योंकि राजगृहवाला कोल्लाकसंनिवेश वहाँ से कोई चालीस मील दूर पश्चिम में पड़ता था और वाणिज्यग्रामवाला कोल्लाक इससे भी बहुत दूर । इससे यही मानना तर्कसंगत होगा कि भगवान् ने वैशाली के निकटवर्ती क्षत्रियकुण्ड के ज्ञातखण्ड वन में प्रव्रज्या ली और दूसरे दिन वाणिज्यग्राम के समीपवर्ती कोल्लाक में पारणा किया ।
(४) क्षत्रियकुण्ड में दीक्षा लेकर भगवान् ने कर्मारग्राम, कोल्लाकसंनिवेश, मोराकसंनिवेश आदि में विचरकर अस्थिकग्राम में वर्षाचातुर्मास्य बिताया और चातुर्मास्य के बाद भी मोराक, वाचाला, कनकखल आश्रमपद और श्वेतविका आदि स्थानों में विचरने के उपरान्त राजगृह की तरफ प्रयाण किया और दूसरा वर्षावास राजगृह में किया था ।
उक्त विहार वर्णन में दो मुद्दे ऐसे हैं जो आधुनिक क्षत्रियकुण्ड असली क्षत्रियकुण्ड नहीं है, ऐसा सिद्ध करते हैं । एक तो भगवान् प्रथम चातुर्मास्य के बाद श्वेतविका नगरी की तरफ जाते हैं और दूसरा यह कि उधर से विहार करने के बाद आप गंगानदी उतर कर राजगृह जाते हैं ।
श्वेतविका श्रावस्ती से कपिलवस्तु की तरफ जाते समय मार्ग में पड़ती थी। यह भूमि-प्रदेश कोशल के पूर्वोत्तर में और विदेह के पश्चिम में पड़ता था और वहाँ से राजगृह की तरफ जाते समय बीच में गंगा पार करनी पड़ती थी, यह भी निश्चित है । आधुनिक क्षत्रियकुण्डपुर के आस-पास न तो श्वेतविका नगरी थी और न उधर से राजगृह जाते समय गंगा ही पार करनी पड़ती थी । इससे ज्ञात होता है कि भगवान् की जन्मभूमि आधुनिक क्षत्रियकुण्ड-जो आजकल पूर्व बिहार में गिद्धौर स्टेट में और पूर्वकालीन प्रादेशिक सीमानुसार अंगदेश में पड़ता है--नहीं है, किन्तु गंगा से उत्तर की ओर उत्तर बिहार में कहीं थी और वह स्थान पूर्वोक्त प्रमाणों के अनुसार वैशाली के निकटवर्ती क्षत्रिय- कुण्ड ही हो सकता है । (३) भगवान् की केवलज्ञान भूमि
__ भगवान् महावीर के जन्मस्थान के संबन्ध में जिस प्रकार गोलमाल हुआ है वैसे ही केवलज्ञान भूमि के विषय में भी अवश्य हुआ है ।
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