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________________ ३६२ श्रमण भगवान् महावीर आलंभिका का उल्लेख है । भगवान् ने छद्मस्थावस्था का सातवाँ वर्षाचातुर्मास्य यहाँ किया था और संगमक के उपसर्ग समाप्त होने के बाद यहाँ पर हरिविद्युत्कुमारेन्द्र ने भगवान् को सुखशाता पूछी थी । आवत्ताग्राम (आवर्ताग्राम) यहाँ पर भगवान महावीर ने तपस्वीअवस्था में बलदेव के मंदिर में कायोत्सर्ग किया था और ग्राम के लोगों के सताने पर बलदेव की मूर्ति ने आपकी सहायता की थी । यह ग्राम कहाँ था, यह बताना कठिन है । भगवान् श्रावस्ती से हलिढुंग, नंगला होकर यहाँ आये थे और यहाँ से चोराक, कलंबुका होते हुए राढ देश में गये थे; इससे अनुमान होता है कि शायद यह कोशल जनपद का ही कोई ग्राम होगा, जो पूर्व तरफ जाते मार्ग में पड़ता था । उज्जयिनी-मालव अर्थात् अवन्तिजनपद की राजधानी उज्जयिनी एक प्राचीन नगरी है। महावीर के समय में यहाँ प्रद्योतवंशी महासेन चण्डप्रद्योत का राज्य था । प्रद्योतवंश परम्परा से जैन धर्म का अनुयायी था । चण्डप्रद्योत भी जैन धर्म का सहायक था । उत्तरकोसल-फैजाबाद, गोंडा, बहराइच, बाराबंकी के जिले तथा आसपास के कुछ भाग, अवध, बस्ती, गोरखपुर, आजमगढ़ और जौनपुर जिलों के कुछ भाग उत्तरकोसल अथवा कोसल जनपद कहलाता था । महावीर के समय में इसकी राजधानी श्रावस्ती थी ।। उत्तरक्षत्रियकुण्डपुर-वैशाली के समीप क्षत्रियकुण्डपुर नगर था । भगवान् महावीर का जहाँ जन्म हुआ था, उसको उत्तरक्षत्रियकुण्डपुर कहते थे । उत्तर बिहार के मुजफ्फरपुर में गंडकी नदी के निकटवर्ती बेसाड़पट्टी ही प्राचीन वैशाली है और इसके पास का वसुकुण्ड प्राचीन क्षत्रियकुण्डपुर । उत्तरवाचाला (उत्तर वाचाला) कनकखल आश्रमपद में चण्डकौशिक को प्रतिबोध देने के उपरान्त पंद्रह दिन तक तप और ध्यान करके महावीर उत्तरवाचाला गये थे, जहाँ नागसेन ने आपको क्षीर का भोजन कराया था। यहीं जाते समय भगवान् का वस्त्र सुवर्णबालुका नदी के पुलिन में कांटों में लगकर गिरा था । यह नगर श्वेतांबी के निकटवर्ती था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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