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विहारस्थल-नाम-कोष
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किया था ।
आर्य भूमि-जैनसूत्रों में भारतवर्ष में अंग, वंग, कलिंग, मगध, काशी, कोशल, विदेह, वत्स, मत्स आदि साढ़े पच्चीस देश आर्य माने गये हैं और शेष अनार्य । आवश्यकचूर्णि में आर्य-अनार्य भूमि के विषय में लिखा है कि जो-जो युगलिक मनुष्य कुलकरों की आज्ञा में रहे, वे आर्य कहलाये और जिन्होंने उनकी मर्यादा का उल्लंघन किया वे अनार्य । जैनसूत्रों में पूर्व में ताम्रलिप्ती, उत्तर में श्रावस्ती, दक्षिण में कौशाम्बी और पश्चिम में सिन्धु तक आर्य-भूमि मानी गई है । परन्तु भगवान् महावीर के समय में उक्त मर्यादा ठीक थी या नहीं, यह कहना कठिन हैं । महावीर उक्त आर्य-देशों में तो विचरे ही थे परन्तु हमारे मत से आप का विहार दक्षिण की तरफ विन्ध्याचल की घाटियों तक भी हुआ था ।
आलभिका (आलभिया) इस नगरी के बाहर शंखवन उद्यान था । आलभिया के तत्कालीन राजा का नाम जितशत्रु था । महावीर के प्रसिद्ध दस श्रमणोपासकों में से पाँचवाँ उपासक गाथापति चुल्लशतक इसी नगरी का रहने वाला था । भगवान् के ऋषिभद्र प्रमुख दूसरे भी अनेक प्रसिद्ध उपासक यहाँ रहते थे, जिनकी भगवान् महावीर ने प्रशंसा की थी । यही पर भगवान् महावीर ने पोग्गल परिव्राजक को निर्ग्रन्थ प्रवचन का उपदेश देकर अपना श्रमणशिष्य बनाया था ।
___ कतिपय विद्वान् आधुनिक ‘एरवा' को, जो इटावा से बीस मील उत्तर-पूर्व की तरफ अवस्थित एक प्राचीन नगर है, 'आलभिया' कहते हैं; परन्तु जैनसूत्रों के लेखानुसार हमें यह मानने को बाध्य होना पड़ता है कि आलभिया आजकल का एरवा नहीं किन्तु काशीराष्ट्रान्तर्गत एक प्रसिद्ध नगरी थी । यह राजगृह से बनारस जाते हुए मार्ग पर अवस्थित थी । महावीर जबजब राजगृह से बनारस और बनारस से राजगृह को विहार करते, बीच में आलभिया में अवश्य ठहरा करते थे ।।
आलंभिका ( आलंभिया)-आलंभिया और आलभिया संभवतः एक ही स्थान के दो नाम हैं । आवश्यक में महावीर के विहारनिर्वाण में
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