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________________ ३५४ श्रमण भगवान् महावीर दार्शनिक साहित्य की जड़ भी श्वेताम्बराचार्य वाचक उमास्वाति कृत सभाष्य तत्त्वार्थसूत्र ही है यह कहने की शायद ही आवश्यकता होगी । उपसंहार श्वेताम्बर और दिगम्बर जैन परम्पराओं के विषय में जितना चाहे लिखा जा सकता है । क्योंकि ये दोनों ही परम्पराएँ अब तक दृढमूल हैं और अपनी कृतियों से संसार को प्रभावित कर रही हैं । तथापि ग्रन्थ के एक परिच्छेद में इससे अधिक लिखना उचित नहीं झुंचता । __ यों तो इस विषय में अनेक प्राचीन और आधुनिक विद्वान् लिख चुके हैं तथापि आज तक उन लेखों से इन परम्पराओं की वास्तविकता प्रकट नहीं हुई थी । हमने यहाँ जो इतना विस्तार किया है खास इसी त्रुटि को दूर करने के लिये । दिगम्बर विद्वान् कहा करते हैं कि 'स्थविरकल्प' नामक 'कल्प' पिछले समय में श्वेताम्बरों द्वारा गढ़ा गया है; परन्तु इस लेख से वे जान सकेंगे कि 'स्थविरकल्प' की मान्यता प्राचीन दिगम्बराचार्यों में भी थी । जिनकल्पधारक साधु प्रथम संहननवाला और विशिष्ट श्रुतधर होना चाहिए, ऐसी केवल श्वेताम्बरों की ही मान्यता न थी, बल्कि दिगम्बराचार्य भी यही मानते थे कि जिनकल्पिक प्रथम संहननधारी और एकादशाङ्ग श्रुतधारी होना चाहिये । इन मान्यताओं के ऊपर से यह निश्चित हो जाता है कि भगवान् महावीर के निर्वाण के बाद थोड़े ही समय में प्रथम संहनन के साथ 'जिनकल्प' का विच्छेद हो गया था, जैसा कि श्वेताम्बर परम्परावाले मानते हैं । उस समय के बाद जितने भी दिगम्बर-श्वेताम्बर साधु हुए सब स्थविरकल्पिक थे । जिनकल्पिक और स्थविरकल्पिकों के आचारमार्ग का जैसा पृथक्करण के प्रतिपादक इन दो ग्रन्थों के आधार पर सर्व विषयक धार्मिक साहित्य कैसे रचा गया ? हम समझते हैं कि हमारे समानधर्मियों ने अपने धार्मिक ग्रंथों के निर्माण में श्वेताम्बरपरम्परा के संगृहीत और लिखित साहित्य का खुल कर उपयोग किया है और इसी परम्परा के धार्मिक सूत्र प्रकरणों के आधार पर टीका, चूर्णियाँ और विविध विषय के ग्रन्थ बनाकर अपना साहित्य भण्डार भरा है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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