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________________ ३५२ श्रमण भगवान् महावीर १. कुन्दकुन्दाचार्य ५१५-५१९ २. अहिबल्याचार्य ५२०-५६५ ३. माघनन्द्याचार्य ५६६-५९३ ४. धरसेनाचार्य ५९४--६१४ ५. पुष्पदन्ताचार्य ६१५-६३३ ६. भूतबल्याचार्य ६३४-६६३ ७. लोहाचार्य ६६४-६८७ पट्टावलीकार उक्त वर्षों को वीरनिर्वाण सम्बन्धी समझते हैं; परन्तु वास्तव में ये वर्ष विक्रमीय होने चाहिये, क्योंकि दिगम्बरपरम्परा में विक्रम की बारहवीं सदी तक बहुधा शक और विक्रम संवत् लिखने का ही प्रचार था । प्राचीन दिगम्बराचार्यों ने कहीं भी प्राचीन घटनाओं का उल्लेख वीर संवत् के साथ किया हो यह हमारे देखने में नहीं आया तो फिर यह कैसे मान लिया जाय कि उक्त आचार्यों का समय लिखने में उन्होंने वीर संवत् का उपयोग किया होगा ? जान पड़ता है, कि सामान्यरूप में लिखे हुए विक्रम वर्षों को पिछले पट्टावली लेखकों ने निर्वाणाब्द मान कर धोखा खाया है और इस भ्रमपूर्ण मान्यता को यथार्थ मान कर पिछले इतिहास-विचारक भी वास्तविक इतिहास को बिगाड़ बैठे हैं । ___यदि हम पट्टावलियों में लिखे हुए पट्टक्रम को ठीक न मान कर श्रुतावतार में दिये हुए श्रुतधर-क्रम को ठीक मान लें तो भी कुन्दकुन्द बहुत पीछे के आचार्य सिद्ध होंगे । क्योंकि श्रुतावतार के लेखानुसार आरातीय मुनियों के बाद अर्हद्वलि आचार्य हुए थे । आरातीय मुनि वीर निर्वाण से ६८३ (विक्रम संवत् २१३) तक विद्यमान थे । इसके बाद क्रमशः अर्हद्वलि, माघनन्दी, धरसेन, पुष्पदन्त, भूतबलि नामक आचार्य हुए । पुष्पदन्त और भूतबलि ने षट्खण्डागम सूत्र की रचना की । उधर गुणधर मुनि ने नागहस्ती और आर्यमंक्षु को कषायप्राभृत का संक्षेप पढ़ाया । उनसे यतिवृषभ ने और यतिवृषभ से उच्चारणाचार्य ने कषायप्राभृत सीखा और गुरु परंपरा से दोनों प्रकार का सिद्धान्त पद्मनन्दि (कुन्दकुन्द) तक पहुँचा । श्रुतावतार के उपर्युक्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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