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________________ ३५० श्रमण भगवान् महावीर है कि दिगम्बर आचार्य ने दसविधसामाचारी की मौलिक बातें श्वेताम्बर-शाखा की आवश्यकनियुक्ति में से ली हैं और उसकी व्याख्या करते समय अर्थ बदलने की चेष्टा की है जिसमें वे सफल नहीं हुए । ऊपर के संक्षिप्त विवरण से ज्ञात हो जायगा कि मूलाचार की रचना दशवैकालिक, महापच्चक्खाणादि पइन्नय, आवश्यक नियुक्ति और आवश्यकभाष्यादि अनेक श्वेताम्बर-सम्प्रदाय के आगम और भगवती आराधनादि कतिपय दिगम्बर सम्प्रदाय के ग्रन्थों के आधार पर विक्रम की सातवीं सदी के आसपास में हुई है ।। ऊपर हमने दिगम्बर सम्प्रदाय के जिन दो प्राचीन ग्रन्थों की जो मीमांसा की है उससे तीन बातें स्पष्ट होती हैं (१) विक्रम की पाँचवीं सदी तक दिगम्बर सम्प्रदाय भी बहुधा श्वेताम्बर आगमों को ही मानता था । (२) प्रारम्भ में दिगम्बर-ग्रन्थकार अपनी रचना में मुख्य आधार श्वेताम्बर जैनागमों का ही लेते थे । (३) परम्परागत कतिपय आगमिक परिभाषाओं का पता न लगने के कारण कहीं-कहीं दिगम्बर ग्रन्थकार अपनी कल्पना से काम लेते थे। जिसके फलस्वरूप वे कई बातों में श्वेताम्बर सम्प्रदाय से अलग हो गये । यहाँ प्रश्न हो सकता है कि 'दिगम्बराचार्य श्वेताम्बर परम्परागत आगमों का आश्रय लेते थे' यह कहने के बदले यही क्यों न कहा जाय कि दिगम्बर ग्रन्थों में जो श्वेताम्बर ग्रन्थोक्त गाथाएँ दृष्टिगोचर होती हैं, वे वास्तव में ऐसे आगमों की होंगी जो श्वेताम्बर और दिगम्बरों के पृथक् होने के पहले के होंगे और दोनों सम्प्रदायों में परम्परा से चले आये होंगे । ठीक है, यह कथन दशवैकालिक और आवश्यकनियुक्ति के सम्बन्ध में किसी तरह मान लिया जा सकता है; पर छेद, भाष्यों और आवश्यकभाष्य की गाथाओं के विषय में क्या समाधान किया जायगा ? क्योंकि भाष्य साम्प्रदायिक पृथक्त्व के बहुत पीछे के हैं । जिनका शिवार्य और वट्टकेर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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