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________________ जिनकल्प और स्थविरकल्प ३४९ अर्थात् "गुरु और साधर्मिक सम्बन्धी पुस्तक अथवा अन्य कोई पदार्थ ग्रहण करना चाहे तो उनको विनयपूर्वक निमन्त्रण करना चाहिये ।" देखिये, कैसी अर्थसंगति बिगड़ गई है ? 'निमंत्रणा' कुछ भी पदार्थ देने के लिये पहले की जानेवाली प्रार्थना का नाम है न कि 'याचना' का । टीकाकार ने निमन्त्रणा का अर्थ 'याचना' करके अर्थ संगति करने की चेष्टा की है पर निमन्त्रणा शब्द का ऐसा अर्थ करना कुछ भी प्रामाणिकता नहीं रखता । आहार- पानी आदि श्रमणोपयोगी पदार्थ लाकर 'इसमें से इच्छा हो सो लीजिये, इस प्रकार अन्य साधु की प्रार्थना करना उसको छंदना कहते हैं और आहार- पानी आदि लेने जाते समय 'आपके लिये मैं लाऊँगा' इस प्रकार अन्य साधु को न्योता देना उसका नाम है 'निमन्त्रणा' । परन्तु दिगम्बराचार्य इन परिभाषाओं का भाव नहीं समझ सके और कल्पनाबल से जो कुछ अर्थ सूझा वही लिख दिया । श्वेताम्बर आगमों में ओघसामाचारी, दशविधसामाचारी और पदविभागसामाचारी, ऐसे सामाचारी के तीन भेद कहे हैं । ओघनियुक्ति में जिस सामाचारी का निरूपण है वह ओघसामाचारी, इच्छामिच्छा आदि दशविधसामाचारी ( इसको 'चक्रवाल सामाचारी भी कहते हैं) और कल्पव्यवहारादि छेद सूत्रोक्त आचार को पदविभागसामाचारी कहते हैं । यद्यपि वट्टकेर के पास आवश्यकनियुक्ति विद्यमान थी और उसमें 'त्रिविध सामाचारी' का उल्लेख भी था, तथापि वहाँ दसविधसामाचारी के अतिरिक्त अन्य सामाचारियों का कुछ भी वर्णन नहीं था । इस कारण दशविध सामाचारी के नाम निर्देश के बाद आये हुए नियुक्तिकार के "एएसिं तु पयाणं पत्तेयरूवणं वोच्छं" ( इन प्रत्येक पदों का निरूपण करूँगा) इस 'प्रत्येक पद' शब्द प्रयोग से उन्होंने इन्हीं दस पदों के विवरण को 'पदविभाग सामाचारी' मानलिया; परन्तु फिर भी सामाचारी के तीन भेद पूरे नहीं हुए तब त्रिविध सामाचारी के स्थान पर दो ही प्रकार का सामाचार मानकर रह गये । इस प्रकार प्रकरणों की अपूर्णता, परिभाषाओं की अनभिज्ञता और अर्थ की असंगतियों का विचार करने से यह बात लगभग निश्चित हो जाती Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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