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________________ ३४८ श्रमण भगवान् महावीर विवरण गाथाओं में कुछ में तो आवश्यकनियुक्ति का अनुसरण है और कुछ में स्वतंत्रता है । स्वतंत्रता आने का कारण कुछ तो सांप्रदायिकता और कुछ आम्नायानभिज्ञता हुई है ।। सामाचारी के पहले भेद 'इच्छाकार' का पारिभाषिक अर्थ यह है कि साधु अपना कुछ भी कार्य अन्य साधु को कहे तो 'इच्छाकारेण (इच्छा से अर्थात् तुम्हारी इच्छा हो तो) अमुक कार्य करो' इस प्रकार शब्द प्रयोग करे; पर आदेश के रूप में किसी को हुक्म न करे । आचार्य वट्टकेर या तो इस भाव को समझ ही नहीं पाये और अगर समझे हैं तो जान बूझकर उन्होंने इसका अर्थ बदल दिया है। क्योंकि नग्न, करपात्र और निष्प्रतिकर्म साधु के लिये ऐसा कोई कार्य ही नहीं होता जो अन्य साधु से करवाया जाय । इस विचार से उन्होंने 'इच्छाकार' का अर्थ किया 'इढे इच्छाकारो' अर्थात् इष्ट का कार्य करने की इच्छा करना, परन्तु यह नहीं सोचा कि-'इच्छा करना' यह सामाचारी या सामाचार कैसे हो सकेगा ? शुभ कार्य करने की इच्छा करना यह जीवमात्र का कर्तव्य है। ऐसे सर्वसाधारण मानसिक विचारमात्र को 'साधु सामाचार' कहना कुछ भी अर्थ नहीं रखता । इसी प्रकार 'आवसिया' शब्द को बिगाड़ कर 'आसिआ' बना दिया है जिसके अर्थ की कुछ भी संगति नहीं होती । 'छंदण' और 'निमन्तणा' का अर्थ मूलगाथा में बिलकुल अस्पष्ट है । 'छंदण गहिदे दव्वे अगहिददव्वे णिमंतणा' ये मूल गाथा के शब्द हैं । जिनका शब्दार्थ ग्रहण किये हुए द्रव्य में छंदना और अगृहीत द्रव्य में निमंत्रणा' होता है; परन्तु इन शब्दों से कुछ भी विशिष्ट अर्थ नहीं निकलता । हाँ, इस विषय का आगे जाकर कुछ स्पष्टीकरण अवश्य किया है पर वहाँ भी अर्थ संगति नहीं होती । सामान्य रीति से दोनों परिभाषाओं का अर्थ बिगाड़ दिया है, पर 'निमन्त्रणा' की तो और भी मिट्टी पलीद कर दी है । इस पद की निम्नोद्धृत विवरण गाथा देखिये "गुरु साहम्मियदव्वं, पुत्थयमण्णं च गेण्हिदं इच्छे । तेसिं विणयेण पुणो, णिमंतणा होई कायव्वा ॥१३८।। (पृष्ठ १२२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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