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________________ जिनकल्प और स्थविरकल्प ३४७ मूलाचार का षडावश्यकाधिकार श्वेताम्बरीय आवश्यकनियुक्ति का ही संक्षिप्त संग्रह है । इसमें कुल १९३ गाथाएँ हैं जिनमें से ७७ गाथाएँ आवश्यकनियुक्ति की हैं और ८ आवश्यकभाष्य की । इनमें १५-२० गाथाएँ कुछ विकृत कर दी गई हैं और जहाँ साम्प्रदायिक मतभेद था वहाँ गाथा को अपनी मान्यता के अनुकूल बना दिया है। शेष गाथाएँ आवश्यकनियुक्ति और भाष्य का संक्षिप्त सार लेकर स्वतंत्र निर्माण की गई हैं । परन्तु सामान्यरूप से इन सब पर शौरसेनी का असर डालने के लिये 'त' के स्थान पर 'द' अवश्य बना दिया गया है । मूलाचार की रचना हुई उसके बहुत पहले ही जैन आगम लिखे जा चुके थे इसलिए ग्रन्थकार को कतिपय श्वेताम्बर आगम तो मिल गये पर परम्परागत अर्थाम्नाय नहीं मिला । इस कारण कई प्रकरण और परिभाषाएँ कल्पनाबल से समझने की चेष्टा करनी पड़ी जिसमें कई जगह वे सफल नहीं हुए । उदाहरण के तौर पर 'सामाचारी' प्रकरण को ही लीजिये। प्राचीन शब्द 'सामाचारी' का वास्तविक अर्थ न समझने के कारण उसके स्थान पर वट्टकेर ने 'सामाचार' शब्द गढ़ा और उसके प्रतिपादन के लिए कुछ फेरफार के साथ निम्नलिखित आवश्यकनियुक्ति की गाथायें लिख दी "इच्छामिच्छाकारो, तधाकारो य आसिआ णिसिही । आपुच्छा पडिपुच्छा, छंदण सनिमंतणा य उवसंपा ॥१२५॥ इटे इच्छाकारो, मिच्छाकारो तहेव अवराहे । पडिसुणणझि तहत्ति य, णिग्गमणे आसिआ भणिआ ॥१२६॥ पविसंते य णिसीही, आपुच्छणिया सकज्ज आरम्भे । साधम्मिणा य गुरुणा, पुव्वणिसिद्धंमि पडिपुच्छा ॥१२७॥ छंदण गहिदे दव्वे अगहिददव्वे णिमंतणा भणिया । तुह्ममहं ति गुरुकुले, आदणिसग्गो दु उवसंपा ॥१२८।। इसमें १२५वीं गाथा आवश्यकनियुक्ति की ६६६वीं गाथा और ६६७ वी गाथा के प्रथमचरण का संक्षेप है और बाद की १२६-१२७-१२८ इन तीन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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