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________________ श्रमण भगवान् महावीर I ऊपर के उल्लेख में यापनीयों को खच्चर की उपमा देने में श्रुतसागरसूरि ने जो अनेक कारण बताये हैं उनमें 'कल्पवाचना' भी एक श्वेताम्बर - परम्परा में वार्षिक पर्व के अवसर पर 'कल्पवाचना' की रीति ठेठ से चली आती है । यही रीति यापनीयों में भी थी । इससे सिद्ध होता है कि शिवभूति ने अपनी नग्नपरम्परा अवश्य चलाई थी, पर उन्होंने प्राचीन आगमों को नहीं ठुकराया था । ३४२ भगवती आराधना नामक एक प्रसिद्ध दिगम्बरीय परम्परा के ग्रन्थ में श्वेताम्बरीय नियुक्तियों तथा भाष्यों की पच्चासों गाथाएँ आज तक ज्यों की त्यों अथवा नाम मात्र के फेरफार के साथ उपलब्ध होती हैं । स्थल संकोच के कारण इन सब गाथाओं की यहाँ चर्चा करना अशक्य है । मात्र दृष्टान्त के तौर पर दो एक गाथाओं के विषय में यहाँ कुछ लिखेंगे । ܣܝܣ श्वेताम्बर मान्य कल्पनिर्युक्ति की दशकल्पप्रतिपादिका निम्नलिखित गाथा भगवती आराधना के १८९ वें पृष्ठ पर दृष्टिगोचर होती है— ""आचेलकुद्देसिय, सेज्जा यर - राय पिंड, 'परियम्मे (किदिकम्मे ) 'वदजेट्ठ 'पडिक्कमणे, 'मासं पज्जोसवणकप्पो ॥४२७॥ उक्त गाथा में १ आचेलक्य, २ औद्देशिकपिंड, ३ शय्यातरपिण्ड, ४ राजपिण्ड, ५ कृतिकर्म (वन्दन), ६ महाव्रत, ७ ज्यैष्ठ्य, ८ प्रतिक्रमण, ९ मास और १० पर्युषण, इन दस कल्पों का उल्लेख है, जो श्वेताम्बर - सम्प्रदाय में अति प्रसिद्ध हैं और पूर्वकाल में दिगम्बर शाखा में भी ये ही दस कल्प प्रचलित होंगे । इस गाथा के स्वीकार से ऐसा मालूम होता है । परन्तु पिछले नये दिगम्बर सम्प्रदाय में से उक्त कल्पों में से कुछ कल्प लुप्त हो गये हैं । यों तो इनमें से बहुत से कल्पों की व्याख्या टीकाकारों ने यथार्थ नहीं की; परन्तु नवें और दसवें कल्प की तो उन्होंने काया ही पलट दी है । विद्वान् पाठकों के अवलोकनार्थ हम अन्तिम दो कल्पों की वसुनन्दी श्रमणाचार्य कृत व्याख्या नीचे उद्धृत करते हैं । "मासो योगग्रहणात् प्राङ्मासमात्रमवस्थानं कृत्वा वर्षाकाले योगो ग्राह्यस्तथा योगं समाप्य मासमात्रमवस्थानं कर्तव्यं लोकस्थितिज्ञापनार्थमहिंसादिव्रतपरिपालनार्थं च Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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