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________________ ३४० श्रमण भगवान् महावीर में नीचे मुजब भिन्न भिन्न हैं : श्वेताम्बर सम्मत पदसंख्या १. आचाराङ्गसूत्र १८००० २. सूत्रकृताङ्ग ३६००० ३. स्थानाङ्ग ७२००० ४. समवायाङ्ग १४४००० ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति २८८००० ६. ज्ञाताधर्मकथाङ्ग ५७६००० ७. उपासकदशाङ्ग ११५२००० ८. अंतकृद्दशाङ्ग २३०४००० ९. अनुत्तरोपपातिकदशाङ्ग ४६०८००० १०. प्रश्नव्याकरणाङ्ग ९२१६००० ११. विपाकसूत्राङ्ग १८४३२००० दिगम्बर सम्मत पदसंख्या १८००० ३६००० ४२००० १६४००० २२८००० ५५६००० ११७०००० २३२८००० ९२४४००० ९३१६००० १८४००००० जोड़=३६८४६००० जोड़=४१५०२००० हमने उपर्युक्त श्वेताम्बरीय पदसंख्या नन्दीटीकानुसार दी है और दिगम्बर पदसंख्या गोम्मटसारानुसार । दोनों में ४६५४००० पदों का अन्तर है । दिगम्बरों ने इतने पद अधिक माने हैं, परन्तु दोनों सम्प्रदायों में खास विशेषता तो 'पद' की व्याख्या में हैं। श्वेताम्बर टीकाकार 'पद' का अर्थ 'अर्थ बोधक शब्द' अथवा 'जिसके अन्त में विभक्ति हो वह पद' यह करते हैं, जो कि व्यावहारिक है; परन्तु दिगम्बराचार्यों ने प्रस्तुत पद की जो परिभाषा बाँधी है, वह एकदम अलौकिक है । वे कहते हैं----'सूत्रों का पद' वह कहलाता है, जिसमें सोलह सौ चौतीस करोड़ तिरासी लाख सात हजार आठ सौ अठासी (१६३४८३०७८८८) अक्षर हों ।' गोम्मटसार की निम्नलिखित गाथा देखिये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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