________________
जिनकल्प और स्थविरकल्प
इसी प्रकार भगवान् महावीर की 'आमलकी क्रीड़ा' सम्बन्धी वृत्तान्तदर्शक तीन शिलापट्ट कंकाली टीले में से निकले हैं और इस समय मथुरा के म्यूजियम में सुरक्षित हैं । इन पर नं० १०४६ एफ ३७ तथा १११५ हैं । उपर्युक्त दोनों प्रसंगों से सम्बन्ध रखने वाले शिलालेख भी वहाँ मिलते हैं ।
पाठकगण को ज्ञात होगा कि महावीर की 'आमलकी क्रीड़ा' का वर्णन भी जैन श्वेताम्बर शास्त्रों में ही मिलता है। दिगम्बरों के ग्रन्थों में इसका कहीं भी उल्लेख नहीं है।
उपर्युक्त दोनों प्रसंगों के प्राचीन लेखों और चित्रपट्टों से यह बात निर्विवाद सिद्ध हो जाती है कि श्वेताम्बर जैन आगमों में वर्णित 'गर्भापहार'
और 'आमलकी क्रीड़ा' का वृत्तान्त दो हजार वर्ष से अधिक प्राचीन है । इस प्रकार श्वेताम्बर जैन शास्त्रोक्त वृत्तान्तों के प्रामाणिक सिद्ध होने से उन शास्त्रों की प्रामाणिकता और प्राचीनता भी स्वयं सिद्ध हो जाती है ।
श्वेताम्बर जैन संघ के मान्य कल्पसूत्र में पुस्तक लिखने के समय की स्मृति में वीरनिर्वाण संवत् ९८० और ९९३ के उल्लेख हैं और इस सूत्र की 'थेरावली' में भगवान् देवर्द्धिगणि तक की गुरुपरम्परा का वर्णन है। इन दो बातों के आधार पर दिगम्बर विद्वान् कह बैठते हैं कि कल्पसूत्र देवद्धिगणि की रचना है, पर वे यह सुनकर आश्चर्य करेंगे कि इसी कल्पसूत्र की थेरावली में वर्णित कतिपय 'गण,' 'शाखा' और 'कुलों' का निर्देश राजा कनिष्क के समय में लिखे गये मथुरा के शिलालेखों में भी मिलता है । पाठकों के अवलोकनार्थ उनमें से दो एक लेखों को यहाँ उद्धृत करते हैं ।
(१) "सिद्धं । सं० २० ग्रामा १ । दि१०+५। कोटियतो गणतो, वाणियतो कुलतो, वइरितो शाखातो, शिरिकातो, भत्तितो, वाचकस्य, आर्यसंघसिंहस्य निर्वर्त्तनं दत्तिलस्य...वि-लस्य कोटुंबिकिय, जयवालस्य, देवदासस्य, नागदिनस्य च नागदिनाये च मातुश्राविकाये दिनाये दानं । इ । बर्द्धमानप्रतिमा' ।"
१. यह लेख कनिंगहामकृत 'आर्कोलोजिकल सर्वे आफ इंडिया' के अंक आठवें में चित्र १३-१४ में प्रकट हुआ है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org