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श्रमण भगवान् महावीर प्रयोग की आवश्यकता ही क्यों होती ?
दूसरे अवदात शब्द का अर्थ भी श्वेत नहीं, उज्ज्वल अथवा स्वच्छ होता है । उज्ज्वल श्वेत भी हो सकता है और अन्यवर्ण भी । अंग्रेज कोई केवली नहीं है, जो उनके कहने से अवदात का अर्थ श्वेत ही माना जाय और अन्यवर्ण न माना जाय ।
बलिहारी है ऐसे कट्टरपंथी विद्वानों की जो अपने पूर्वबद्ध विचारों के समर्थन के लिये सत्य वस्तु का गला घोंटने में और असत्य वस्तु को मूर्तिमान बनाने में तनिक भी नहीं हिचकिचाते ।
दिगम्बर लेखक कहा करते हैं कि श्वेताम्बरमत प्रवर्तक जिनचन्द्र ने अपने आचरण के अनुसार नये शास्त्र बनाये और उनमें स्त्रीमुक्ति और केवलिकवलाहार और महावीर का गर्भापहार आदि नयी बातें लिखीं । इस आक्षेप के ऊपर हम शास्त्रार्थ करना नहीं चाहते, क्योंकि स्त्रीमुक्ति और केवलिमुक्ति का निषेध पहले पहल दिगम्बराचार्य कुन्दकुन्द ने ही किया है जो कि विक्रम की छठी सदी के विद्वान् ग्रन्थकार हैं । इनके पहले के किसी भी ग्रन्थकार ने इन बातों का निषेध नहीं किया । इसलिये इन बातों की प्रामाणिकता स्वयं सिद्ध है ।
रही गर्भापहार की बात, सो यह मान्यता भी लगभग दो हजार वर्ष से भी प्राचीन है, ऐसा कथन डा० हर्मन जेकोबी आदि विद्वानों का है और यह कथन केवल अटकल ही नहीं; ठोस सत्य है । इस पर भी इस विषय में जिनको शंका हो वे मथुरा के कंकाली टीला में से निकले हुए 'गर्भापहार' का शिलापट्ट देख लें, जो कि आजकल लखनऊ के म्यूजियम में सुरक्षित है। प्राचीन लिखित कल्पसूत्रों में जिस प्रकार का इस विषय का चित्र मिलता है ठीक उसी प्रकार का दृश्य उक्त शिलापट्ट पर खुदा हुआ है । माता त्रिशला
और पंखा झलनेवाली दासी को अवस्वापिनी निद्रा में सोते हुए और हिरन जैसे मुखवाले हरिनैगमेषी देव को अपने हस्तसंपुट में महावीर को लेकर ऊर्ध्वमुख जाता हुआ बताया है । (इस दृश्य के दर्शनार्थी लखनऊ के म्यूजियम में नं० जे० ६२६ वाली शिला की तलाश करें) ।
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