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श्रमण भगवान् महावीर करके दिगम्बर विद्वानों ने कह दिया कि देखो ! इसमें श्वेताम्बरों की उत्पत्ति पाँचवीं सदी में होना लिखा है । परन्तु उन्हें यह तो समझ लेना चाहिये था कि जब दिगम्बराचार्य स्वयं भी श्वेताम्बरों की उत्पत्ति विकम की दूसरी शताब्दी में हुई लिखते हैं तब यह पाँचवीं सदी बतानेवाला लेखक किस प्रकार प्रामाणिक हो सकेगा; परन्तु जिन्हें येन केन प्रकारेण श्वेताम्बरों की अर्वाचीनता ही सिद्ध करना है, उन्हें इन बातों से क्या मतलब ? श्वेताम्बर सम्प्रदाय की प्राचीनता
ऊपर हमने यह बताने का यत्न किया है कि श्वेताम्बरों की उत्पत्ति के विषय में प्राचीन और आधुनिक विद्वानों ने जो कुछ लिखा है, उसमें वे सफल नहीं हुए, बल्कि उन्हीं के लेखों से श्वेताम्बर परम्परा की प्राचीनता सिद्ध होती है।
__अब हम यह देखेंगे कि श्वेताम्बर सम्प्रदाय की प्राचीनता को सिद्ध करनेवाले कुछ प्रमाण भी उपलब्ध होते हैं या नहीं ।
बौद्धों के प्राचीन पालिग्रन्थों में आजीवकमत के नेता गोशालक के कुछ सिद्धान्तों का वर्णन मिलता है जिसमें मनुष्यों की कृष्ण, नील, लोहित, हारिद्र, शुक्ल और परमशुक्ल ये छः आभिजातियाँ बतायी गईं हैं। इनमें से दूसरी नीलाभिजाति में बौद्धभिक्षुओं और तीसरी लोहिताभिजाति में निर्ग्रन्थों का समावेश किया है । इस स्थल में निर्ग्रन्थों के लिये प्रयुक्त बौद्धसूत्र के शब्द इस प्रकार हैं-"लोहिताभिजाति नाम निग्गंथा एकसाटकाति वदति" । अर्थात् एक-चीथड़ेवाले निर्ग्रन्थों को वह लोहिताभिजाति कहता है । (अंगुत्तरनिकाय भाग ३ पृष्ठ ३८३)
- इस प्रकार गोशालक ने निर्ग्रन्थों के लिये जो यहाँ 'एक चीथड़ेवाले' यह विशेषण प्रयुक्त किया है और इसी प्रकार दूसरे स्थलों में भी अतिप्राचीन बौद्ध लेखकों ने जैन निर्ग्रन्थों के लिये 'एकसाटक' विशेषण लिखा है । इससे सिद्ध होता है कि बुद्ध के समय में भी महावीर के साधु एक वस्त्र अवश्य रखते थे, तभी अन्य दार्शनिकों ने उनको उक्त विशेषण दिया है ।
कट्टर साम्प्रदायिक दिगम्बर यह 'एकसाटक' विशेषण उदासीन निर्ग्रन्थ श्रावकों के लिये प्रयुक्त होने की सम्भावना करते हैं, परन्तु उन्हें यह मालूम
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