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(२०) भगवान् के केवलज्ञान के चौवीसवें वर्ष में प्रभास, छब्बीसवें वर्ष में अचलभ्राता तथा मेतार्य, अट्ठाईसवें वर्ष में अग्निभूति तथा वायुभूति और तीसवें वर्ष में व्यक्त, मंडित मौर्यपुत्र तथा अकंपित गणधर राजगृह के गणशील चैत्य में निर्वाण को प्राप्त हुए थे अतः उस समय भगवान् महावीर वहीं होंगे, यह निश्चित है । ६. रेखाचित्र की आवश्यकता
भगवान् के केवलिजीवन का रेखाचित्र, इसकी उपपत्ति, आधारस्तंभ और सामान्य हेतुसंग्रह का सविस्तर निरूपण करके हम पाठकगण को नीरस विषय की चर्चा में नहीं खींचते । पर हमारी कृति के इस विभाग की योजना बिलकुल नवीन है। इसमें त्रुटि अथवा असंगति का होना संभव है और इसमें ऐसा कुछ भी हो तो तुरंत दूर किया जाए, ऐसी लेखक की इच्छा है । रही हुई त्रुटि या असंगति का पता तभी लग सकता है जब कि इसकी रचना का मूलाधार खोल कर दिखाया जाय और उसके साधक हेतुओं का भी दिग्दर्शन कराया जाय । बस यही कारण है कि हमें इस विषय में यहाँ विस्तार से लिखना पड़ा । ७. अभ्यस्त सामग्री
_ग्रन्थनिर्माण में किस सामग्री का कहाँ उपयोग किया गया है, यह प्राय: पहले कहा जा चुका है और जो शेष है वह केवलिजीवन के संबन्ध में ही । हमने यह योजना किन-किन सूत्रों के आधार से की है, उसके उल्लेख वहीं प्रकरणों के अन्त में दी गई टिप्पणों में कर दिये गये हैं जिससे कहीं भी कुछ शंका अथवा असंगति ज्ञात होते ही उस विषय का आधार ग्रन्थ देख कर उसका निराकरण किया जा सके ।
अभ्यस्त सामग्री के विषय में अधिक कहना नहीं है । हमारी श्रद्धा और रुचि का विषय मुख्यतया जैन सूत्र थे, अतः विशेषतया हमने जैन सूत्रों में ही छान-बीन की । वैदिक और बौद्ध साहित्य में भी महावीर के संबन्ध में क्वचित् उल्लेख मिलते अवश्य हैं, पर उनकी यहाँ उपयोगिता नहीं समझी गई । आज तक छपे हुए हिन्दी, गुजराती महावीर-चरित्र भी देख लिये गये
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