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________________ ३१६ 'इस प्रकार मार्गभ्रष्ट सेवड़ों की उत्पत्ति कही ।' इसी आशय की श्वेताम्बरोत्पत्ति विषयक कथा ग्रन्थकार ने अपने ' दर्शनसार' नामक ग्रन्थ में भी लिखी है, पर वहाँ उन्होंने अपने अतिशय ज्ञान का भी परिचय दे दिया है, लिखा है 'और इस प्रकार अन्य भी आगमदुष्ट मिथ्याशास्त्रों की रचना करके 'जिनचन्द्र' ने अपनी आत्मा को प्रथम नरक में स्थापित किया ।' श्रमण भगवान् महावीर इसी कथा को पन्द्रहवीं और सोलहवीं सदी के आसपास के दिगम्बर विद्वान् पं० वामदेव जी ने भी अपने भावसंग्रह में लिखा है, जहाँ अन्य वृत्तान्त तो इसी प्रकार का है, पर एक बात जो उन्होंने नयी कही है उसे नीचे लिख देते हैं । 'डरे हुए जिनचन्द्र ने उपद्रव की शान्ति के लिये आठ अंगुल लम्बे एक चतुरस्त्र काष्ठ पर उसका संकल्प कर के पूजन किया । श्वेत वस्त्र पर स्थापन करके विधिपूर्वक पूजन करने से उस व्यन्तर ने उपद्रवात्मक चेष्टा को छोड़ दिया । वह 'पर्युपासन' नामक कुलदेव हुआ जो आज भी जलगन्ध आदि से बड़ी भक्ति से पूजा जाता है ।' 'बीच में उत्तम श्वेतवस्त्र रख कर उसका पूजन किया इस कारण यह मत लोक में 'श्वेताम्बर' इस नाम से प्रसिद्ध हुआ' । विक्रम की सत्रहवीं सदी के भट्टारक रत्ननन्दी ने 'भद्रबाहु चरित्र' नामक एक ग्रन्थ बनाया है, यद्यपि इसका नाम भद्रबाहु चरित्र है पर वास्तव में इसकी रचना श्वेताम्बर मत के खण्डन के लिये की गई है । इसमें भी श्वेताम्बरमतोत्पत्ति का वृत्तान्त दिया है, पर यह देवसेन और वामदेव के दिये हुए वृत्तान्तों से बिलकुल विलक्षण है । भट्टारकजी का दिया हुआ वृत्तान्त यहाँ पूरा पूरा उद्धृत करना तो अशक्य है; पर उसका संक्षिप्त सार दे देते हैं । 'एक समय श्रुतकेवली भद्रबाहु बारह हजार मुनि परिवार के साथ उज्जयिनी नगरी के बाहर उद्यान में पधारे । उज्जयिनी का राजा चन्द्रगुप्ति आचार्य महाराज के वन्दनार्थ गया और पिछली रात में देखे हुए १६ स्वप्नों का फल पूछा । भद्रबाहुस्वामी ने राजा को उसके स्वप्नों का फल बताया Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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