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________________ ३०६ श्रमण भगवान् महावीर कहते हैं-'आसन देना, उपकरण देना, उचित शरीर का स्पर्श करना (विश्राम के लिये पगचंपी वगैरह करना), समयोचित कार्य करना, भोजन लाना, संथारा करना, उपकरणों की प्रतिलेखना करना इत्यादि शरीर से साधुवर्ग का जो उपकार किया जाता है वह 'कायिक विनय है ।' भगवती आराधना की ३१०वी गाथा में तो स्पष्ट रूप से आहार औषधादि द्वारा साधु अन्य साधु का वैयावृत्त्य करे ऐसा विधान किया है । पाठकगण के विलोकनार्थ हम उस मूल गाथा को ही यहाँ उद्धृत कर देते हैं "सेज्जागासणिसेज्जा-उवधिपडिलेहणा उवगाहिदे । आहारोसहवायण-विकिंचणुव्वत्तणादीया ॥" ३१०॥ अर्थात् निवासस्थान, आसन, उपधि और औपग्रहिक उपकरणों की प्रतिलेखना करना; आहार, औषध, वाचना देना, मलमूत्र आदि को बाहर परठना (फेंकना), शरीर मर्दन आदि करना वैयावृत्त्य (सेवाबन्दगी) कहलाता है । यही गाथा कुछ परिवर्तन के साथ वट्टकेरस्वामी के मूलाचार ग्रन्थ में पञ्चाचाराधिकार में भी आती है, जहाँ उसके टीकाकार आचार्य वसुनन्दी लिखते हैं-"आहारेण-भिक्षाचर्यया, औषधेन-शुंठिपिप्पल्यादिकेन, शास्त्रव्याख्यानेन, च्युतमलनिर्हरणेन, वन्दनया च, शय्यावकाशेन, निषद्योपधिना, प्रतिलेखनेन च पूर्वोक्तानामुपकारः कर्तव्यः । एतैस्ते प्रतिगृहीता आत्मीकृता भवन्तीति ।" (मूलाचार पृ० ३०८) उसी भगवती आराधना की गाथा ६६५-६६८ में संलेखना करनेवाले साधु की सेवा संबंधी व्यवस्था बताते हुए शिवार्य कहते हैं-"लब्धिवान् और सरल प्रकृतिक चार मुनि उसके योग्य निर्दोष आहार लावें तथा चार वैसा ही निर्दोष पानी लावें, चार मुनि क्षपक के लिये प्रस्तुत किये हुए आहारपानी के द्रव्यों की सावधानी से रक्षा करें और चार वैयावृत्त्य कर मुनि क्षपक के मलमूत्र आदि को परठे (बाहर ले जाकर छोड़ें) और समय पर उपधि, शय्या संथार आदि की प्रतिलेखना करें ।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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