________________
३०२
श्रमण भगवान महावीर
शिष्य परम्परा चली ।
"बोटिक शिवभूति और उत्तरा ने अपनी तर्क बुद्धि से रथवीरपुर में इस मिथ्यादर्शन को उत्पन्न किया है ।
___ "बोटिक शिवभूति से बोडियलिङ्ग की उत्पत्ति हुई और कोडिनकोट्टवीर परम्परास्पर्शक उत्पन्न हुए ।"
दिगम्बर सम्प्रदाय का उत्पत्ति विषयक श्वेताम्बर ग्रन्थों में यही मौलिक वृत्तान्त है । बाद के ग्रन्थकारों ने जो कुछ भी इस विषय में लिखा है सब इसी वृत्तान्त के आधार पर लिखा गया है ।
पञ्चकल्पचूर्णि में शिवभूति का नाम 'चण्डकर्ण' बताया है और वहाँ इसके पिता के सम्बन्ध में भी कुछ वृत्तान्त लिखा है । पाठकों के अवलोकनार्थ हम उसे भी यहाँ लिखे देते हैं ।
"राजा का एक शीर्षरक्षक (अङ्गरक्षक-एडीकांग) था । वह साधुओं के पास धर्म सुन कर श्रावक हो गया । उसकी वही आजीवका थी इसलिये उस तलवार को छोड़ काष्ठ की तलवार रखता । उसके मित्र ने राजा से कह दिया कि वह काष्ठ की तलवार रखता है । राजा ने उसे तलवार दिखाने को कहा । इस पर श्रावक ने सम्यग्दृष्टि देवता का स्मरण-नमस्कार करके तलवार खींची और म्यान से लोहे की तलवार निकली । राजा ने उस पुरुष की तरफ देखा तो वह सकुचा गया, तब श्रावक ने राजा के पैरों में पड़कर सत्य बात कह दी। उसके चंडकर्ण नामा पुत्र था जिसने दीक्षा लेकर बोटिकों को उत्पन्न किया ।"
श्वेताम्बराचार्यों के लिखे हुए शिवभूति के वृत्तान्त के अक्षरशः सत्य होने का भले ही हम दावा न करें, तथापि उनके पिता का राजा का अंगरक्षक
या इससे मिलते जुलते नामवाले आचार्य का नाम है । भाष्य में इन्हें शिवभूति का शिष्य नहीं लिखा किन्तु 'परम्परास्पर्शक' (भाष्य के शब्द-परंपराफासमुप्पण्णा) लिखा है। इससे स्पष्ट है कि ये शिवभूति के दीक्षा-शिष्य नहीं, परम्परा शिष्य थे । अधिक प्रसिद्ध होने के कारण या दिगम्बर शाखा में महत्त्वपूर्ण कार्यकर होने के कारण भाष्यकार ने शिवभूति के अनन्तर इनका नामोल्लेख किया है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org