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________________ ३०० श्रमण भगवान् महावीर के शिष्य शिवभूति ने फिर जिनकल्प की चर्चा खड़ी की और स्वयं जिनकल्पी बनकर चिरकाल से मुरझाये हुए जिनकल्प और स्थविरकल्प के मतभेद के अङ्कर को नवपल्लवित किया ।। पाठकों के ज्ञानार्थ हम आवश्यकमूलभाष्य और उसकी चूर्णि में कहा हुआ शिवभूति का वृत्तान्त ज्यों का त्यों यहाँ लिख देते हैं ताकि इस विषय में श्वेताम्बरों की मौलिक मान्यता जानी जा सके । "महावीर को सिद्ध हुए छ: सौ नौ वर्ष व्यतीत हुए तब रथवीरपुर में बोटिकों का दर्शन उत्पन्न हुआ । रथवीरपुर नगर था । वहाँ 'दीपक' नाम का उद्यान था । आर्य कृष्ण नाम के आचार्य वहाँ पधारे । "वहाँ सहस्रमल्ल शिवभूति नामक एक आदमी रहता था । एक समय उसकी स्त्री ने अपनी सास से शिकायत करते हुए कहा-'वे नित्य आधी रात के समय आते हैं, तब तक मैं जागती हुई भूखी बैठी रहती हूँ । सास ने कहा-आज द्वार बंद कर सो जा, मैं जानूँगी । वह सो गई । आधी रात के समय उसने द्वार खटखटाया । तब माता ने फटकार कर कहा-इस समय जहाँ खुले द्वार दिखाई दे वहाँ चला जा । वह लौट गया और तलाश करने पर साधुओं का उपाश्रय खुला पाया । उसने साधुओं को वन्दन करके कहा-~~-मुझे प्रव्रज्या दीजिये । पर साधुओं ने उसकी प्रार्थना स्वीकार नहीं की । उसने स्वयं अपना लोच कर दिया, तब उसे साधु का वेष दिया गया और उसके साथ साधु वहाँ से चले गये । में निर्मित हुई थी। तथा मथुरा के आसपास और उसके पश्चिम प्रदेश में बहुत पूर्वकाल में 'कृष्ण गच्छ' अथवा 'कृष्णर्षि गच्छ' नाम से प्रसिद्ध श्वेताम्बराम्नाय का एक प्राचीन गच्छ भी प्रचलित हआ था जो विक्रम की पन्द्रहवीं सदी तक चलता रहा । कालसाम्य का विचार करने पर हम समझते हैं कि ये मूर्तिवाले और गच्छ के आदिपुरुष वे ही आर्य कृष्ण होंगे जिनके शिष्य शिवभूति ने जिनकल्प का स्वीकार किया था । (२) दिगम्बराचार्यों ने नियमपूर्वक शौरसेनी भाषा का सब से अधिक आदर किया है जो कि मथुरा के आसपास की प्राचीन काल की भाषा है । इससे भी हमारे अनुमान का समर्थन होता है कि दिगम्बर शाखा का मूल उद्भवस्थान वही शूरसेन देश है जिसकी राजधानी मथुरा थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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