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________________ जिनकल्प और स्थविरकल्प २९९ अग्रावतार) का लगभग सार्वत्रिक प्रचार हो गया था । यद्यपि बस्ती के बाहर उसे कोई रखता और कोई बिलकुल नग्न रहता पर बस्ती में जाते समय सभीको उसका उपयोग करना पड़ता था । शीतनिवारणार्थ जो एक कम्बल और एक दो सूती वस्त्र रक्खे जाते थे वे भी ठंडी के समय में ही ओढ़े जाते थे, शेष काल में ओढ़ने की प्रवृत्ति नहीं थी। आर्यरक्षित के स्वर्गवास के बाद धीरे-धीरे साधुओं का निवास बस्तियों में होने लगा और इसके साथ ही नग्नता का भी अन्त होता गया । पहले बस्ती में जाते समय बहुधा जिस कटिबन्ध का उपयोग होता था वह बस्ती में बसने के बाद निरन्तर होने लगा । धीरे-धीरे कटिवस्त्र का भी आकार-प्रकार बदलता गया । पहले मात्र शरीर का अगला गुह्य अंग ही ढ़कने का विशेष ख्याल रहता था, पर बाद में सम्पूर्ण नग्नता ढांक लेने की जरूरत समझी गयी और उसके लिये वस्त्र का आकार प्रकार भी कुछ बदलना पड़ा । फलतः उसका नाम 'कटिबन्ध मिटकर चोलपट्टक (चुल्लपट्ट-छोटा वस्त्र) पड़ा । इस प्रकार स्थविरकल्पियों में जो पहले ऐच्छिक नग्नता का प्रचार था उसका धीरे धीरे अन्त हो गया । आर्य महागिरि के समय से जिनकल्प की तुलना के नाम से कतिपय साधुओं ने जो नग्न रहने की परम्परा चालू की थी वह उस समय के बहुत पहले ही बंद हो चुकी थी । आचाराङ्ग के उस अचेलकता प्रतिपादक उल्लेख को जिनकल्प-प्रतिपादक करार दिया जा चुका था और उस समय के ग्रन्थकार चोलपट्टक की गणना स्थविरकल्पियों के मूल उपकरणों में कर चुके थे । मतभेदाङ्कुर की नवपल्लवता स्थविरकल्प की जिस परिस्थिति का ऊपर उल्लेख किया गया है उसी परिस्थिति में मथुरा के निकटस्थ 'रहवीर'' नामक गाँव में रह कर आर्य कृष्ण १. 'रहवीर' गाँव कहाँ था, इसका श्वेताम्बर ग्रन्थों में कुछ भी खुलासा नहीं है, तथापि उसे हमने मथुरा के निकट बताया है । इसके दो कारण हैं (१) मथुरा के कंकाली टीले में से जैन श्वेताम्बर परम्परा के आचार्य आर्य 'कण्ह' की एक अर्घ नग्न मूर्ति निकली है जो प्राय: विक्रम की द्वितीय शताब्दी के प्रारम्भ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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