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________________ २९४ श्रमण भगवान् महावीर स्थविरकल्पिक श्वेताम्बर जैन आगमों में स्थविरकल्पिकों का जो वर्णन मिलता है, उसे हम दो भागों में बाँटेंगे और उनको क्रमशः 'सूत्रकालीन' तथा 'भाष्यकालीन' इन नामों से पहचानेंगे । सूत्रकालीन स्थविरों का वर्णन इस प्रकार है__ "जो भिक्षु तीन वस्त्र और एक पात्र के साथ रहता है, उसे कभी चतुर्थ, वस्त्र माँगने की इच्छा नहीं करनी चाहिये । तीन वस्त्र भी निर्दोष जानकर माँगने चाहिये और जैसे मिलें वैसे ही काम में लाने चाहिये । न उन्हें धोवे रंगे, न धुले-रंगे वस्त्रों को धारण करे । विहार में उन्हें न छिपाकर अल्प वस्त्रवान् होकर फिरे । यही वस्त्रधारी की सामग्री है । जब वह यह समझे कि शीतकाल बीत गया और ग्रीष्मकाल आ गया है तब यथाजीर्ण वस्त्रों को त्याग दे वा कम कर दे अथवा एक शाटक (टुकड़ा) रख कर बाकी त्याग दे अथवा बिलकुल अचेल बन जाय । इस प्रकार करता हुआ वह अपने को हलका बनाता है और इससे एक प्रकार की तप:साधना होती है । जो बात भगवान् ने कही है उसे यथार्थ समझना चाहिये । "जो भिक्षु एक पात्र और दो वस्त्रों के साथ रहता है उसे तीसरे वस्त्र की याचना नहीं करनी चाहिये । "जो भिक्ष एक पात्र और एक वस्त्र के साथ रहता है उसे दूसरा वस्त्र माँगने की इच्छा नहीं करनी चाहिये । "जो भिक्षु अचेलक होकर रहता है यदि वह यह समझे कि मैं तृणस्पर्श, शीतस्पर्श, तेजःस्पर्श, दंशमशकस्पर्श और दूसरा कोई भी भयंकर स्पर्श सहन कर सकता हूँ, पर लज्जा प्रतिच्छादन को नहीं छोड़ सकता तो वह कटिबन्धन रख सकता है । अचेलक होकर विचरने में तृण, शीत, ताप और दंशमशक का स्पर्श अथवा कोई अन्य भयंकर स्पर्श भी आ पड़े तो उसे सहन करे । अचेलक में लघुता समझ कर उक्त परीषह सहन करे । "जो भी दो वस्त्रों से, तीन वस्त्रों से, बहुवस्त्रों से अथवा अचेलकता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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