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________________ ३४ और हमारी कहीं भूल हो तो पकड़ी भी जा सके । (१) यों तो भगवान् महावीर ने हजारों स्थानों में विहार किया होगा, परन्तु सूत्रों में उनके भ्रमण स्थानों के जो नाम उपलब्ध होते हैं, उनकी संख्या भी एक सौ के ऊपर है । इन में से बराबर आधे स्थान समूचे उत्तरभारत में पूर्व से पश्चिम तक फैले हुए थे । इन स्थानों में पहुँचने के लिये भगवान् ने पर्याप्त भ्रमण किया होगा, यह निश्चित हे । (२) श्रेणिक की मृत्यु के पश्चात् मगध की राजधानी चम्पा में चली गई थी और कोणिक ने अपने भाइयों की सहायता से वैशाली पर चढ़ाई कर चेटक के साथ घोर संग्राम किया था, जिसका नाम भगवतीसूत्र में 'महाशिलाकंटक' लिखा है । गोशालक मंखलिपुत्र ने अपनी मृत्यु के समय जिन आठ चरिमों की प्ररूपणा की थी उनमें 'महाशिलाकंटक' सातवाँ चरिम बताया है । इस से सिद्ध है कि वैशाली का वह ऐतिहासिक युद्ध गोशालक की जीवितावस्था में हो चुका था अथवा समाप्त होने को था । (३) गोशालक के साथ वादविवाद के समय भगवान् महावीर अपने जीवन के सोलह वर्ष शेष रहे बताते हैं । इससे सिद्ध होता है कि गोशालक वाली घटना भगवान् के केवलिजीवन के चौदहवें वर्ष मार्गशीर्ष महीने में घटी थी । (४) श्रेणिक की मृत्यु के बाद उनके स्मारकों को देख-देख कर कोणिक का अपने पिता की मृत्यु के दुःख से दुखित रहना और इसी कारण राजधानी का वहाँ से हटा कर चम्पा में ले जाना, हल्ल विहल्ल के सुखविहार से कोणिक की पट्टरानी की ईर्ष्या, बहुत समय तक उपेक्षा करने के बाद कोणिक का स्त्री हठ के वश होना, हल्ल विहल्ल से सेचनक हाथी का माँगना, हल्ल विल्ल का वैशाली जाना, कोणिक का चेटक के पास तीन बार दूत भेजने के अनन्तर युद्ध का निश्चय, कालादि दस भाइयों को अपनी अपनी सेनायें तैयार कर एकत्र होने की आज्ञा, ससैन्य सब का वैशाली पहुँचना और बहुकालपर्यन्त लड़ने के उपरान्त उसका 'महाशिलाकंटक युद्ध' यह नाम प्रसिद्ध होना; इन सब कार्यों के संपन्न होने में कम से कम चार वर्ष अवश्य Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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